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अट्ठसहिमो संधि अहो ताय तुज्झु जइ णावडइ तो सिंधउ केम समावडइ वीभच्छु केम वले पइसरइ कडवंदणु सच्चइ किह करइ किह भिडइ भीमु मह भायरहं हय एक्कतीस एक्कोयरहं किह होइ विणासु वरूहिणिहे रण-मुहे सत्तहे अक्खोहिणिहे लोलंत पेक्ख सामंत-सय दोहाइय रहवर तुरय गय अम्हारउ जीवणु संगहहि भीमज्जुण-पक्खु समुव्वहहि पर-तक्कणेण पर-डंभणहो को गंदइ भिच्चें वंभणहो दुजोहण-दुव्वयणासि-हउ गुरुदेवु पडुत्तरु कोव-गउ
घत्ता वहुअ वइरि एक्कल्लएण वंभणेण होवि मई मुक्किय । तुम्हेहिं सव्वेहिं खत्तिएहिं ते तिण्णि धरेवि ण सक्किय ।।
[१०] णियय-हियाहिउ तेण० अवुहु ण वुज्झइ तेण०। पर णिक्कारणे तेण० दिवे दिवे जुज्झइ तेण०॥
विउरेण-वि तुहं [ण]-वि सिक्खविउ को णउ जो तेण ण दक्खविउ पहु हउ-मि हियत्तणेण कहमि भीमज्जुण-पक्खु ण उव्वहमि राहाहवे खंडवे कंज-वहे वंदि-गहे गो-गहे दुव्विसहे गंगेय-तिगत्त-महाहयणे भयवत्त-जयद्दह-णिट्ठवणे पंडवहं परक्कम दिट्ठ पई दुव्वयणेहिं विंधहि तो-वि मई रत्ति-द्दिउ वइरिहिं अभिडमि दुजोहण केम-वि णावडमि दूसासण-सउणि-कण्ण-चविउ लग्गइ ण महारउ सिक्खविउ विद्दवियइं अज्जु जाई वलइं आयई अहिमण्ण-दुमहो फलई
घत्ता तो वुच्चइ दुजोहणेण पर जाम ताम पहरेवउं। जहिं असेस सामंत गय तहिं मइ-मि ताय जाएवउं ।।
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