________________
२०९
छायासीइमो संधि
पत्ता सच्चइ दाहिण-चक्कं वामए दोण-खयंकरु। पालउ पच्छलु पत्थु अग्गए थाउ विओयरु॥
[१५] जो जेत्तहे आइडु णरिंदें सो तेत्तहे णियमिउ गोविंदें वाहिउ रहु पारद्ध रणंगणु पिहिउ पिसक्क-गणेहिं गयणंगणु वहिरिउ तिहुयणु तूर-णिणाएं किं पि ण दीसइ रय-संघाएं एत्तहे सल्लराय साओहण एत्तहे भिडिय भीम-दुजोहण एत्तहे सच्चइ वलई णिसिद्धइं एत्तहे स-धणु धणंजउ विंधइ एत्तहे सिहंडि रणु पारंभइ एत्तहे आसत्थामु वियंभइ एत्तहे धट्ठज्जुणु परिसक्कइ एत्तहे स-कियवम्मु किउ थक्कइ एत्तहे णउलु स-भायरु कुज्झइ | एतहे सउणि स-संदणु जुज्झइ
घत्ता चामर-छत्त-सयाई पेक्खंतहं अमरोहहं। जस-खंड इव पडंति कउरव-पंडव-जोहहं।।
तो धयरटेण सुधीमहो छिण्णु सरेण सरासणु भीमहो पाडिउ कंचण-सीहु धयग्गहो णाइं महामणि णह-सिरि-अंगहो सत्ति विओयरेण मेल्लिज्जइ कुरुव-णरिंदु ताम उरे भिज्जइ सारहि णिहउ ताम कियवम्में रक्खिउ जीउ णाई णिय-वम्में मुच्छ-पराणिए कुरु-परमेसरे धाइय सल्ल-दोणि तहिं अवसरे णिय-णिय-जुज्झइं मुएवि स-गव्वेहिं कुरुव-राउ परिवेढिउ सव्वेहिं तव-तोएण ताम मद्देसहो ढोइय सर वच्छयलुद्देसहो तेण-वि तासु एवं अवरोप्परु जाउ जुज्झु तियसह-मि भयंकरु
ढाइय
८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org