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रिट्ठणे मिचरिउ
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घत्ता
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पंडव-कुरुवेहिं एव जुज्झई कियई पभूयई। हय-गय-सुहड-सिराइं महियले पुंजीहूयाई।
[१३] ताम धणंजएण गुरु-णंदणु किउ अ-तुरंगु अ-सूउ अ-संदणु दोण-सुएण मुसलु परिपेसिउ जायरूवमय-पट्ट-विहूसिउ तमि कइओयणेण उढुक्कंतउ(?) । खंडई सत्त करेवि पमुक्कर आसत्थामें परिहु विसज्जिउ पंचहिं वाणहिं सो-वि परजिउ एवं तिसत्ति-चक्क-गय-मग्गइं चउहिं सरेहिं चयारि-वि भग्गई सरहसु धम्मु ताव थिउ अंतरे गुरु-सुउ ताडिउ तिहि-मि थणंतरे तेण-वि रणे सुवम्मु ओसारिउ सरहु कयंत-णयरु पइसारिउ रहे आरुहेवि थक्कु गुरु-णंदणु ताम णरिंदहो कुविउ जणद्दणु
घत्ता अ-णिहम्मंतए कण्णे णरु णारायणु जिंदइ। एवंहिं तव-सुय काई सल्लहो सीसु ण छिंदइ ।।
[१४] ताव दिवायरु गउ मज्झण्णहो भणइ जुहिट्ठिलु अग्गए कण्हहो पई समाणु वाणासण-धारउ णरु पहरंतु दि१ सय-वारउ दुमइहे तणए सयंवर-मंडवे सुरहं मंडु डझंतए खंडवे भड-भययत्त-जयद्दह-मारणे विससेणाहवे कण्ण-महारणे भीमु-वि दिलु णिसायर-मारउ कीया-कुरुव-कुल-क्खयगारउ एवंहिं मइं पहरंतउ जोयहि जमलीहोहि मज्झु रहु ढोयहि जिवं मद्दियउ मंडु मद्देसरु जिम महु सरणु अज्जु वइसाणरु । लहु रहु वहु-पहरणहं भरावहि करि कलयलु तूरइं देवावहि
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