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________________ ९३ तो कम्मो केरउ लडु फलु गुरु5- वंधव सयणहं करेवि खउ अच्छेवर णरए अहोमुहेण दुक्ख विसम विसतएण वइतरणि-तरंगिण - उत्तरणे तिल - कुसुम-समाणइं जहिं घरइं घत्ता तुहुं वेयारिउ वसुमइए ल-हुसहं वलि - रामहं [३] तो खलियत्थई तेण० भग्गइं सव्वई तेण धट्ठज्जुण- सच्चइ-चप्पियइं मारुय-गय-घायहिं चूरियई st दुज्जोहण - साहणई तहिं अवसरे आउ अनंतकम- -कम-कंपाविय-धरणियलु गुरु-णंदणु संदणु धरेवि थिउ किय दोण - दिवायरु अत्थमिउ कुरुवाहिउ पभणइ ण किय किउं - वलु घत्ता अक्खिउ गउत्तम-णंदणेण एक् हत्थे तव-तणयहो दिण्णु ण अद्धउं । भणु आयए कवणु ण खद्धउ ॥ Jain Education International चूरविउ सयलु-वि कुरुव-वलु कहि केत्त होसइ थत्तियउ सुपसारिय पाय पओरुहेण वस-वीसढु सलिलु पियंतएण हुयवह- सीयले असिपत्त-वणे असुहइं गिरि-मेरु- महत्तरई सज्झस - वीयइं तेण० । कुरुवाणीयइं तेण० ॥ तवणंदण - जमल- झडप्पियइं वासवि पिसक्क परिपूरियई कुरु-कर- परपेसिय-वाहणइं मं भज्जहो मंभी संतु वलु स सरासणु फेरिउ सर- णियलु मुउ कवणु केण कुरु-भंगु किउ for सुसिउ सिंधु गिरि विक्कमिउ हरं कवि ण सक्कमि कहउं किउं णिसुणंतहो णरवर - विंदहं । वेहत्थिहिं सहसु णरिंदहं ॥ [४] हरि - उवइट्ठेहिं तेण० पंडव - जेट्ठेहिं तेण० । धणु छंडाविउ तेण० गुरु माराविउ तेण० ॥ तेहत्तरो संधि ४ For Private & Personal Use Only ८ ९ ४ ८ ११ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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