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________________ ९४ रिट्ठणे मिचरिउ सुय-सोयाऊरिय-विग्गहहो दोणहो परिचत्त-परिगहहो सर-सायर-सलिल-णिमग्गाहो । वंभोत्तरे सग्गे वलग्गाहो भड-णिवहहो विणिवारंताहो अज्जुणहो धरंत-धरंताहो धट्ठज्जुणेण सिरु पाडियउ ताल-तरु णाई फलु साडियउ णिसुणेवि जणेर-सग्गारुहणु किउ गुरुसुएण सायर-खुहणु रस-रसणु महीहर-हल्लवणु णक्खत्त-पडणु गह-कंपवणु वोल्लाविउ कुरुव-णराहिवइ पंडवहं पगासमि पलय-गइ धट्ठज्जुण-जीविउ अवहरमि जंसुएण करेवउ तं करमि घत्ता जइ ण-वि मारमि पंडु-सुय सिवि-सोमय-सिंजय-मच्छा। तो अणसणु पेक्खंतु महु विण्णि व सहसच्छ-तियच्छा ।। कहिं तव-णंदणु तेण० कहिं दामोयरु तेण। कहिं कइकेयणु तेण० कहि-मि विओयरु तेण०॥ कहिं जमल सुहड सिहंडि-पवर कहिं जण्णसेण्णि सच्चइ अवर सयल-वि मरंति महु समर-मुहे जिह करि केसरि-वयणंदुरुहे जिह पण्णय गरुड-समागमणे जिह सलह पईव-समावडणे तव-सुएण ताम गंडीव-धरु वोल्लाविउ खंडव-पलयकरु अहो अज्जुण अक्खु केवं वलिउ । पडिवारउ पर-वलु संगिलिउ णिसुणिजइ पर-वलु दुब्बिसहु रसमसइ रउद्दु तूर-णिवहु पहरणइं फुरंति जलण-सिहइं तारायण-चंद-सूर-णहइं धय फरहरंति हिंसंति हय रह थरहरंति गज्जति गय घत्ता केण णियत्तिउ कुरुव-वलु रण-भरहो खंधु को देसइ। जायव-पंडव-भडहिं सहुं कहु कवणु जोहु जुज्झेसइ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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