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इकहत्तरिमो संधि [१२] तो पलित्त साहणेण लोहिय-प्पसाहणेण भीमसेण-णंदणेण काललोह-संदणेण धूमवण्ण-विगहेण लोयणग्गि-दूसहेण कालरूव-भीसणेण मेह-णाय-णीसणेण भूरि-भाव-भावणेण दिव्व-माय-दावणेण विप्फुरंत-कुंडलेण ढक्कियक्क-मंडलेण दुद्धरासणी विमुक्त विजुलावली व ढुक्क अट्ठ चक्क सार-भूव देवय व्व दिण्ण-धूव जोयणाइं दो कराल एक्क-जोयणं विसाल तं णिएवि धायरट्ठ पुट्टि दित के-वि णट्ठ तो दिवायरंगएण दिव्व-मच्छरंगएण सजे भीम-णंदणासु लेवि मुक्क मंड तासु
पत्ता स-धउ स-छत्तु स-चामरु स-धुरि स-हयवरु रहु संचूरेवि मुक्कउ। करणु देवि तहो थाणहो अंतरे वाणहो गउ केत्तहे-वि घुडुक्कउ॥१३
[१३] णं अयरिसणु हूउ परमप्पउ पडिवउ जाउहाणु किउ अप्पर रोक्कइ वलइ धाइ वहु-वेसेहिं सरह-सीह-सदूल-विसेसहिं मक्कड-महिस-मेस-मायंगेहिं करह-कोल-खर-रिच्छ-भुवंगेहिं वसह-तुरंग-रोज्झ-रुरु-चमरेहिं . मंकुण-दंस-मसय-दुभंमरेहिं सारमेय-गोमाउ-विरालेहिं भल्लुय-भूय-पेय-वेयालिहिं डाइणि-जोइणि-गह-चामुंडेहिं वायस-घोर-गिद्ध-भेरुंडेहिं तहिं अवसरे थिएण आसण्णे विजय-सरासणु कड्डिउ कण्णे दस सय संख सरासण पेसिय __माया-रूव-रिद्धि णीसेसिय
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