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रिठ्ठणे मिचरिउ
घत्ता सरहिं णिरंतर पूरिउ कह व ण चूरिउ णिसियरु माया-पाणें। अंतर-थाणे पइसइ कह व ण दीसइ णिक्कलु जिह विणु जाणे ॥ ९
[१४] ताम वग-णंदणो वइरि संसग्गिणा झत्ति संदीविओ परम-कोवग्गिणा भणइ दुज्जोहणु देहि आएसयं जा हिडिंवा-सुअंकरमि णीसेसयं एक्कचक्काहिवो जेण विणिवाइओ से सरीरुब्भवो एस संभाइओ भणइ कुरु-परिविढो जाहिं जाहिहुंअं णेहि जम-सासणं पंडुणंदण-सुअं ४ हरिसिओ रक्खसो वाहिओ संदणो अमर-वर-कामिणी-लोयणाणंदणो सरहसुद्धाइया दो-वि जायं रणं सुरवहू-जयसिरी-पाणिगह-कारणं पहय पडु-पडह दडि-संख-कोलाहलं विवुह-वहु-अंगणा-गीय-जय-मंगलं वच्छदंतासणी-भिण्ण-गयणंगणं एवमारंभियं तेहिं समरंगणं
घत्ता घायालिंगण-सारउ कइयवगारउ करण-वंध-सय-भरियउ। मुच्छण-वेयण-भावेहिं विविहालावेहिं सुरयहो रणु अणुहरियउ॥ ९
[१५] तो ओणिद्दए णिद्दा-भुत्तई पंडव-कुरुवाणीयई सुत्तई णिसियर वावरंति विण्णि-वि जण विण्णि-विलोहियख-रत्ताणण विण्णि-वि भीम-वगासुर-णंदण विण्णि-वि काललोहमय-संदण विण्णि-वि गिद्ध-चिंध दप्पुद्धर वे-वि मयंध कुद्ध णं सिंधुर ४ विण्णि-वि घोर रूव धूमप्पह विण्णि-वि रिक्खचम्म सज्जिय-रह विण्णि-वि सायमुहेहि तुरंगेहिं विण्णि-वि हत्थि-चम्म-फरुसंगेहिं विण्णि-वि भूसिय कंसिय-कवएहिं विण्णि-वि धणुअवरेहि वज्जमएहिं विण्णि-वि सिल-धोयहि णाराएहिं विण्णि-वि खर-वाणेहिं साहाएहिं ८
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