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________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता वि-क्कवय वि-धणु वि-चिंधा रह-सिहरेहिं वइसारिय। सूएहिं णिय-णिय-सेण्ण पहर-विहुर पइसारिय।। एत्तहे वि वे वि थिय लद्ध-सण्ण एत्तहे वि भिडिय रणे णउल-कण्ण सर-जालेहिं जाउ तमंधयारु एक्कहे वि ण फिट्टइ पुरिसयारु एक्केण वि एक्कहो सुहु ण दिण्णु ++++++++++++++ एक्केण वि एक्कहो ण किउ भंगु जोइज्जइ रणु जिह पुव्व-रंगु सच्चेहिं पधाइय तिण्णि ताव विंदाणुविंद-कइकय स-चाव णं तिहिं कुंजरेहिं मइंदु रुद्ध णाराएहिं संसय-भावे छुडु एक्कल्लउ खिवइ खुरुप्प-पंति दस वीस तीस णं वावरंति तिहिं तिण्णि-वि चावई ताडियाई भुय खंडिय सीसइं पाडियाई घत्ता कवल गिलेप्पिणु तिण्णि णं मुहु करयले धोवइ। भुक्खिउ णाई कयंतु पडिवउ पासइं जोयइ॥ ८ [१०] तहिं अवसरे गुरु-सुउ रहे वलगु कहिं भीमु स मई मगंतु जुज्झु संसत्तग-वलु किय खयहो णेमि । तं णिसुणेवि महसूयणेण वुत्तु तो आसत्थामें ण किउ खेउ वे तुम्हेहिं हउं एक्कल्लउ जे कइकेयणु पभणइ एउ वुज्झु जइ दोणायरियहो तणउ पुत्तु जिह पलय-मेहु गजणहं लग्गु णरु कहइ भडारा कहमि तुज्झु किय गुरु-णंदणहो झडक्क देमि लइ जाहुं तेत्थु जहिं दोण-पुत्तु वोल्लाविउ पत्थु स-वासुएउ लइ तिण्णि-विभुंजहुं समरहो ज्जे सो धण्णउ जो तउ देइ जुज्झु तो सरवर-धोरणि धरि णिरुत्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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