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पंचहत्तरिमो संधि
घत्ता
मत्त गइंदारूढ तवसुय-कुरुवइ-किंकर। थिय विहिं गिरि-सिहरेहिं विण्णि-वि णावइ जलहर।
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तहिं भीमु थणंतरे तोमरेहि विणिभिण्णु भुवंगम-भीयरेहि एक्केण समीरण-सुएण विद्ध कुरुवाहिवेण सटिहिं णिसिद्ध सर-लक्खें रोस-वसंगएण णासाविउ करि व वणंगएण कह कह-वि वलेप्पिणु अंकुसेण आभिट्ट विओयरु अमरिसेण णं थिय विहिं सइलहिं विण्णि रुक्ख सम-दिण्ण-घाय सम-जणिय-दुक्ख तोसाविय-जम-वइसमण-इंद वइसारिय विसम महागइंद थिय पायहिं भीमें लउडि लइय कालायस-घडिय सुवण्ण-खइय इयरेण वि स-फर किवाण-लट्ठि पवि-पुत्तहो वाहिय घाय-सट्ठि
घत्ता गयए गयंत-अंतकरिए हणेवि हिडिवा-णाहें । स-फरु स-खगु णरिंदु चूरिउ सहु सण्णाहें।
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जं णिहउ रणंगणे खेमधुत्ति सण्णाहु करेप्पिणु परम-गुत्ति गुरु-सुउ धाइउ ता वद्ध-कोहु विणिवद्ध-तोणु पेसिय-सरोहु हउ एक्कावणवइहिं पंडु-पुत्तु . दिणमणि व स-किरणु थिउ मुहुत्तु पुणु विहि-मि सहासु सहासु मुक्कु घण-डंवरु णाई णवल्लु ढुक्कु मायरिसहो णंदणु तेत्थु काले तोमरेण भिण्णु समुहंतराले भालालिणिडाल-णिडालणामे गुरु-सुउ तिहिं ताडिउ तिहिं जि थामे थिय विण्णि-वि गिरि व तिएक्कसिंग हय पडह-संख-काहल-मुयंग दुजणेहिं वि साहुक्कारु दिण्णु अवरोप्परु वाणेहिं पुणु विभिण्णु
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