________________
रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता णहयल-समई वलाई मणिगण-कर-किरणायर । तवसुय-रूवई वे-वि णं थिय चंद-दिवायर ॥
तो समालग्गमुगं महा-भंडणं हत्थ-पायंग-गीवा-सिर-क्खंडणं णीसरंतंत-अंतावली-चप्पणं मत्त-मायंग-कुंभत्थलुक्कप्पणं ढुक्क-पाइक्क-संजाय-संघट्टणं लग-माणिक्क-सण्णाह-णिव्वट्टणं मंति-सेणाणि-सामंत-दुक्खावणं हड्ड-विच्छड्ड-रुंडट्ठि-दक्खावणं ४ भंभ-भंभीस-भेरी-णिणायाउलं चक्क-कुंतासि-वाणासणी-संकुलं जोइणी-डाइणी-भूय-भेसावणं कंक-भल्लुक्क-जंतुक्क-पुक्कावणं हत्थि-मत्थिक्क-थंभोह-छिप्पावणं कित्ति-चिक्खिल्ल-दिक्खुजलिय-पावणं तं खणद्धेण जायं मही-मंडलं हार-केऊर-कंठी-कलावुज्जलं
घत्ता तहिं तेहए संगामे भीमु भमंतु ण थक्कइ। णाई खीर-समुद्दहो मज्झे मंदरु णं परिसक्कइ।
८
तो अज्जुणु वलिउ धणुद्धराहं णारायण-पत्थहं मेहलाहं पंचालहं सोमय-सिंजयाहं एत्तहे-वि जुहिट्ठिल-कुरुवराय सच्चइ वियंध-किंकर-सहाउ एत्तहे वि पहाण-णराहिवेहिं पइसरइ भीमु कउरव-समुद्दे दरिसंति परोप्परु समर-जुत्ति
संसत्तग-गण-जालंधराहं मुरलासय-केरल-कोहलाह एत्तहे-वि कण्णु रणे दुज्जयाह पहरंत परोप्परु विरह जाय धाइउ जहिं कइकेउ दिण्ण-घाउ गय-लक्खेहिं केहि-मि पत्थिवेहिं वाहण-पहरण-जलयर-रउद्दे पडिलग्ग विओयर-खेमधुत्ति
८
जमात
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org