________________
१०९
विह- तूर वि दीसणाई क
घत्ता
थिउ रहे अमरिस- कुद्धउ । छुडु जे छुडु सुएवि वुद्धउ ॥
[३]
अण्णेत्तहे णिग्गय वर - तुरंग
अण्णेत्त मयगल सवल - वण्ण
अण्णेत्तहे कंचण-रह- णिहाय अण्णेत्त भड पहरण- विहत्थ मेलावेवि चउविहवल समूहु सई व परिट्ठि अंगराउ विहिं पासेहिं किव किववम्म वे-वि थिउ सउणि ससंदणु लोयणेहिं
घत्ता
मयर वूहु रवि णं खय-काले समुहु
Jain Education International
[४]
तं णिएवि जुहिट्ठिलु भणइ एम आएसु दिण्णु तो अज्जुणेण दाहिणए सिंगे सयमेव थाइ सहएव - उल पुट्ठिहिं ठवेवि कुरुखेत्तु गयई किय कलयलाई
मिलियई वेणि हंगणाई गज्जिय-गयण व घण- डंवराई धणु- सुरधणु-मंडलि-मंडियाई
णं खय-मयरहर महा-तरंग
णं
णं सजल जलय णहयले णिसण वहु मिलेवि कणयइरि आय णं कूर महागह उडुगणत्थ गिरि - गरुयउ विरइउ मयर वूहु अब्भंतरे सरहसु कुरुव-राउ सिरे सिहरे समच्छरु दोणि दो - वि परिगरिय गीव कुरु - साहणेहिं
चंपाहिवइ पयट्टइ । णिम्मज्जायउ वट्टइ ॥
पंचहत्तरिम संधि
-
For Private & Personal Use Only
करि वूहु धणंजय जिणहि जेम किउ अद्धयंदु धट्ठज्जुणेण वामउ पवणंगउ वलउ णाई वासव-सुय -तव-सुय मज्झे वे - वि भिडियई पंडव - कउरव-वलाई फुरियाउह-गय- तारायणाई असि-विज्जुज्जलिय- दियंतराई रह-रवि-रहवर-परिचड्डियाई
४
८
९
४
८
www.jainelibrary.org