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________________ रणधुर धवलु मुवि तुहं सेणावइ होहि पंचहत्तरिम संधि परिरक्खिय पंडव महुमहेण पंचाह कणय-कलसद्धएण णिब्भिच्चें सामिय- वच्छलेण कउ जीविउ सोमय - सिंजयाहं चंपाहिउ पभण देव देव जिह मारमि पंच-मि पंडु-पुत्त तो सयल - वसुंधर- रोहणेण कउसेएं उंवर वीदु छण्णु दहि-दुव्व महोसहि दप्पणेहिं - Jain Education International व [१] भरु ण चडाविउ अण्णहो । पट्टु र कण्णो ॥ सव्वेहि-म किउ अहिसेउ विसय महारिसि जेवं घत्ता कइ-कह-वंदि - वर - चारणाहं धण - हीणहं दीणहं दुक्खियाहं अ- पमाणई दाणई तुरिउ देवि सण्णज्झइ सरह अंगराउ वात्तई हई भयंकराई पणवेक्क-पाणि-णंदीमुहाई ढड्ढr - ढक्कारव - ढक्किराई कल- काहल - कंवुय - खंखुणाई [२] वासर वीसद्ध पियामहेण एवहिं पई अमरिस- कुद्धएण अवसरे अ-णियच्छिय- पच्छलेण जय (कउ ?) तवसुव - भीम-धनंजयाहं हउं सयल-काल वोल्लंतु एवं हरिहर - वंभाणेहिं जइ वि गुत्त परितुझें तें दुज्जोहणेण वइसारेवि तहिं अहिसित्तु कण्णु८ चामीयर - सिंगामज्जणेहिं जय-सिरि रे- वहु परिणेज्जहि । तिह तुहुं वइरि जिणेज्जहि ॥ णड - णच्चण - गायण - वायणाहं पह-भमियहं णिसियहं भूक्खियाहं कह कह व किलेसहिं रयणि वि समरुज्जमु सव्वहो वलहो जाउ ४ वहु डमरुय-डिंडिम-डंवराई दीड-दर- दुंदुहि-गोमुहाई वर - झल्लर - सल्लरि - झिक्किराई णद्धसुर-सुसर तंती - घणाई - For Private & Personal Use Only ४ १० ८ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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