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चउहत्तरिमो संधि तेण तवेण वे-वि रणे दुजय को जोहइ गोविंद धणंजय जाहं वज्ज-संथाण-सरीरई दुब्भेयई दुद्दमइं दुरीरइं दइउ सहेजउ जाहं परिट्ठिउ भुय-वलु पवलु ण केण-वि णिट्ठिउ ८ दइउ जे जिणइ जाहं पर-चक्कई जउहर-जूव-फलइं परिपक्कई
पत्ता पंडवहं अणिट्ठइं तुम्हहं मिट्ठइं तउ सेविजंताई। एवहिं दुवियड्डहं कउरव-संढहं विसिभूयई पच्चंताई।
[दुवई] एम भणेवि णिहुय दिव्वक्खर वाणि परिट्ठियंवरे ।
अमर-करें वियाई सुर-कुसुमइं पडियई पत्थ-रहवरे ॥ तो पण्णारहमउ गंउ वासरु अत्थ-महागिरि ढुक्कु दिवायरु धाइउ तिमिर-णियरु आगासहो गयई वलई णिय-णिय-आवासहो कुरुव-णराहिवेण सह मंडिय दोणायरिय-मरण-कह छंडिय रवि-सुउ वोल्लाविउ अणुराएं महि महु पइं होतेण सहाएं गुरु-गंगेयहिं देवि ण सक्किय ण जिउ धणंजउ इयर ण वंकिय सारहि-पंडु-पुत्तु लइ खंडउ कउरव-लोयहुं होहि तरंडउ भारु भारु जं दिण्णु सुवण्णहो थिउ अद्धासणे महु सुपसण्णहो जं किउ चंपापुर-परमेसरु तहो सव्वहो इहु वट्टइ अवसरु
घत्ता परिहविय पुरंदरु होहि धुरंधरु खंधु समोड्डहि रण-भरहो। पडिवक्ख-दुलंघउ हउं अवठंघउ तुज्झु सई भुअ-पंजरहो।
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इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
चउहत्तरिमो सग्गो॥
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