SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०७ चउहत्तरिमो संधि तेण तवेण वे-वि रणे दुजय को जोहइ गोविंद धणंजय जाहं वज्ज-संथाण-सरीरई दुब्भेयई दुद्दमइं दुरीरइं दइउ सहेजउ जाहं परिट्ठिउ भुय-वलु पवलु ण केण-वि णिट्ठिउ ८ दइउ जे जिणइ जाहं पर-चक्कई जउहर-जूव-फलइं परिपक्कई पत्ता पंडवहं अणिट्ठइं तुम्हहं मिट्ठइं तउ सेविजंताई। एवहिं दुवियड्डहं कउरव-संढहं विसिभूयई पच्चंताई। [दुवई] एम भणेवि णिहुय दिव्वक्खर वाणि परिट्ठियंवरे । अमर-करें वियाई सुर-कुसुमइं पडियई पत्थ-रहवरे ॥ तो पण्णारहमउ गंउ वासरु अत्थ-महागिरि ढुक्कु दिवायरु धाइउ तिमिर-णियरु आगासहो गयई वलई णिय-णिय-आवासहो कुरुव-णराहिवेण सह मंडिय दोणायरिय-मरण-कह छंडिय रवि-सुउ वोल्लाविउ अणुराएं महि महु पइं होतेण सहाएं गुरु-गंगेयहिं देवि ण सक्किय ण जिउ धणंजउ इयर ण वंकिय सारहि-पंडु-पुत्तु लइ खंडउ कउरव-लोयहुं होहि तरंडउ भारु भारु जं दिण्णु सुवण्णहो थिउ अद्धासणे महु सुपसण्णहो जं किउ चंपापुर-परमेसरु तहो सव्वहो इहु वट्टइ अवसरु घत्ता परिहविय पुरंदरु होहि धुरंधरु खंधु समोड्डहि रण-भरहो। पडिवक्ख-दुलंघउ हउं अवठंघउ तुज्झु सई भुअ-पंजरहो। १० इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए चउहत्तरिमो सग्गो॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy