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११३
भणइ जणद्दणु ताव वज्जाउह- सम-सार
घत्ता
खंडव - डामरगारा । को सर धरइ तुहारा ॥
[११]
जं भणिउं एव जणद्दणेण तिहिं णरु णरेण पहरंतएण स-सरासणु वामउ करेवि हत्थु पुणु लक्खें लक्ख-सएण विद्धु सीसक्कु भीम साहु गत्तु कर-चरणु धणु गुणु जाणु छिण्णु दरिसावइ णरु णारायणासु किह पहरइ अम्हहं समउं दुड्डु
घत्ता
तिहिं तिहिं सर एक्केक्कु भज्जेवि रवि-किरणाहं
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एक्कल्लउ पर-वलु वावरंतु गंडीउ भमंतर करे अथक्कु पसरंति पिसक्कई पारियंग हय-गय-रहवर - णरवर दु-खंड विद्धंसइ रिउ - साहणइं जाम तो वलिउ समच्छरु सव्वसाइ समुहंतरे आसत्थामुविद्धु परिपेसिउ पहरणु सव्वधारु
[१२]
हणेवि तिगत्तह धावइ । घणहं महाघणु णावर ॥
तं सहहिं हउ गुरु-णंदणेण किउ धणु ति-खंड भल्ल-तएण तिहिं हरि हउ दसहिं सरेहिं पत्थु रहु रहिउ रहंगु तुरंग चिंधु सिय-चामर-जुयलु सियायवत्तु तं विहि-मि आसि तव चरणु चिण्णु उच्चरिउ पेक्खु दोणायणासु तो एम भणेवि विभत्थु रुड्डु
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पंचहत्तरिम संधि
णं विज्जु - पुंजु दीस फुरंतु लक्खिज्जइ णाई अलाय - चक्कु वंमीयो णाई महा-भुयंग सहुं सरेहिं समाउहु वाहु-दंड सरवरेहिं पिहिउ गुरु- सुएण ताम वक्कणेण सणिच्छरु ठियउ णाई दप्पुभडु तो-वि ण पडिणिसिद्धु तं णरेण णिवारिउ दुण्णिवारु
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