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सत्तहत्तरिमो संधि
राहेयहो पट्टे णिवद्धए महि-कारणे रणे पारद्धए। धुर-धरण-कियंकिय-खंधइ कुरु-पंडु-वलाई सण्णद्धई ।।
पोमाइउ दुज्जोहणेण णरु एक्क-रहु जे पर-वल-पलयकरु एक्कएण जे खंडउ चारियउ सुर-सेण्णु सव्वु ओसारियउ एक्केण जे तीस कोडि अवय विणिवाइय रणे णिवाय-कवय एक्केण जे तालुयवम्म जिय एक्केण जे कालकंज वहिय एक्केण जे हउं मेल्लावियउ गंधव्व-लोउ भेल्लावियउ एक्केण जे धणु परियत्तियउं कुरु-साहणु सरेहिं विहत्तियउं एक्केण जे जालंधर-सयइं णारायण-गण-पमुहई हयई एक्केण जे भंजिय कुरुव-वलु सई खुडिउ जयद्दह-सिर-कमलु
घत्ता समरंगणे णीसामण्णेण दुज्जोहणु पणिउ कण्णेण। णारायणु जासु सहेजउ पर-वलई स जिणइ धणंजउ॥
[२] तो जामिणि जाम-विणिग्गमणे दिवसाणणे दिवसयरुग्गमणे रण-रसियइं पसरिय-कलयलई सण्णद्धइं कुरु-पंडव-वलई सरहसई समुब्भिय-धयवडइं वहु-मंडण-मंडिय-गय-घडई सोवण्णावयव-महारहई गय-मय-चिक्खिल्ल-पवट्ट-हयई हय-फेण-तरंगिणि-दुत्तरइं तूरारव-भरिय-दियंतरई जयसिरि-कर-गहणुत्तावलई कुरुखेत्तु गयई विण्णि-वि वलइं तव-तणएं वूहई विरइयई णं णव-जलहर-जालई थियई वोल्लाविउ कुरुवें रवि-तणउ तुहुं एक्कु मित्तु महु अप्पणउं
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