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छहत्तरिमो संधि
दुव्वयणावसाणे सकसाएं णवहिं सरेहिं विद्धु कुरु-राएं तेरह तव-सुएण परिपेसिय चउहिं चयारि वाह परिसेसिय पंचमेण सारहि-सिरु पाडिउ ताल-तरुवरहो णाई फलु साडिउ छट्टेणासुगेण वर-चिंधउं खंडिउ कणय-भुयंग-समिद्धउं सत्तमेण धणुवरु विद्धंसिउ आयवत्तु अट्ठमेण विणासिउ अवरेहिं सरेहिं विद्ध वच्छत्थले करणु करेवि परिट्ठिउ महियले कुरुव-णराहिव कह-व ण मारिउ कण्ण-कलिंग-किवेहिं परिवारिउ रवि अत्थमिउ जाउ जउ तिमिरहो कुरु-पंडव गय णिय-णिय सिमिरहो ८
__घत्ता अत्थाणे णिविट्ठ तवसुय-दुजोहणेहिं किय। णं इंद-पडिंद चवणे सइं भूमियले थिय ।
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
छहत्तरिमो सग्गो॥
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