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सत्तहत्तरिमो संधि घत्ता वेयारिउ गुरु-गंगेएहिं भिच्चेहिं अवरेहि-मि अणेएहिं। णासइ व धरणि परिसक्किय महि केण-वि देवि ण सक्किय ॥
तो अक्खइ कुरु परमेसरहो भाणुब्भउ भाणुमईसरहो जं वीसकम्म-उप्पाइयउ सक्कहो करे कह-व पराइयउ पुणु परसुराम-घरे अच्छियउ पुणु महु घरे पइसि णियच्छियउ तं कालवट्ठ अविण? रणे चंपाहिउ हउं दव्विसह रणे रहु दिव्वु तुरंगम णिप्पसर तोणीरे अणिट्ठय सप्प-सर जइ सारहि सल्लु समावडइ तो पंडव-साहणु पडिवडइ परिओसिउ कुरुव-णराहिवइ वोल्लाविउ तो मद्दाहिवइ अहो धीर वीर सुंडीर-तणु धयरट्ठ-सरिसु तुहुं एक्कु जणु
घत्ता जइ वसुमइ देण समिच्छहि तो रण-भरु अज्जु पडिच्छहि । तावणिहे तव-तणु-तेयहो सारत्थु करहि राहेयहो।
[४] जिह सारहि अरुणु दिवायरहो जिह मायलि सुर-परमेसरहो जिह दारुइ देवइ-णंदणहो तिह तुहुं रवि-सुयहो स-संदणहो तो करेवि साहत(?) भिउडि वलिउ णं घिएण हुवासणु पज्जलिउ दुजोहण वोल्लहि णवर तुहुँ महि-मंडले अण्णहो कासु मुहु को कण्णु कवण किर चारहडि वलु कवणु वित्ति का आरहडि अहिमाणु कवणु किर कवणु कुलु महु पासिउ किं सो रणे अतुलु महु पासिउ किं छलु रवि-सुयहो सारत्थु करमि हउं जेण तहो गउ एम भणेवि णिय-आसवहु थिउ चरण धरेप्पिणु कुरुव-पहु
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घत्ता
तुहं महुसूयणहो-वि वड्डउ धुउ कण्णहो पत्थु ण पुज्जइ
हउं तेण परिट्ठिउ अड्डउ। पइं सूए महि धुउ भुज्जइ ।।
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