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________________ १२७ सत्तहत्तरिमो संधि घत्ता वेयारिउ गुरु-गंगेएहिं भिच्चेहिं अवरेहि-मि अणेएहिं। णासइ व धरणि परिसक्किय महि केण-वि देवि ण सक्किय ॥ तो अक्खइ कुरु परमेसरहो भाणुब्भउ भाणुमईसरहो जं वीसकम्म-उप्पाइयउ सक्कहो करे कह-व पराइयउ पुणु परसुराम-घरे अच्छियउ पुणु महु घरे पइसि णियच्छियउ तं कालवट्ठ अविण? रणे चंपाहिउ हउं दव्विसह रणे रहु दिव्वु तुरंगम णिप्पसर तोणीरे अणिट्ठय सप्प-सर जइ सारहि सल्लु समावडइ तो पंडव-साहणु पडिवडइ परिओसिउ कुरुव-णराहिवइ वोल्लाविउ तो मद्दाहिवइ अहो धीर वीर सुंडीर-तणु धयरट्ठ-सरिसु तुहुं एक्कु जणु घत्ता जइ वसुमइ देण समिच्छहि तो रण-भरु अज्जु पडिच्छहि । तावणिहे तव-तणु-तेयहो सारत्थु करहि राहेयहो। [४] जिह सारहि अरुणु दिवायरहो जिह मायलि सुर-परमेसरहो जिह दारुइ देवइ-णंदणहो तिह तुहुं रवि-सुयहो स-संदणहो तो करेवि साहत(?) भिउडि वलिउ णं घिएण हुवासणु पज्जलिउ दुजोहण वोल्लहि णवर तुहुँ महि-मंडले अण्णहो कासु मुहु को कण्णु कवण किर चारहडि वलु कवणु वित्ति का आरहडि अहिमाणु कवणु किर कवणु कुलु महु पासिउ किं सो रणे अतुलु महु पासिउ किं छलु रवि-सुयहो सारत्थु करमि हउं जेण तहो गउ एम भणेवि णिय-आसवहु थिउ चरण धरेप्पिणु कुरुव-पहु ८ घत्ता तुहं महुसूयणहो-वि वड्डउ धुउ कण्णहो पत्थु ण पुज्जइ हउं तेण परिट्ठिउ अड्डउ। पइं सूए महि धुउ भुज्जइ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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