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________________ रिट्ठणे मिचरिउ १२८ अकुलीणउ जइ चंपाहिवइ जइ अंग-राउ णउ वड्डिमउ पहु-अवसरे तिण-समु गणइ सिरु तुहुं पंडु-पुत्तु लइ सयल महि ता तेण-वि उत्तरु दिण्णु तहो ण समिच्छमि वसुमइ-वइसणउं धणु-कोडिए भीम णिवारियउ एवड्डु महाणुभाउ कवणु तो अत्थई रामु ण अल्लियइ तो महु अद्धासणे चडइ कउ गंगेएं दिण्णु कुमति चिरु कुरु-पंडव-पेसणु कारवहि हउं किंकरु कुरुव-णराहिवहो णउ छत्तई चामर वासणउं जम-जे? जिणेवि ण मारियउ जई घई तुहुं वीयउ धुर-धरणु ८ घत्ता तं णिसुणेवि अणिहय-मल्लेण दुजोहणु पणिउ सल्लेण । जइ करहि महारउं वुत्तउं तो सारहि होमि णिरुत्तउं ।। ४ पणवंतहो कुरुव-णराहिवहो परिओसु पवडिउ कुरु-णिवहे करि-कक्ख-महद्धउ उब्भियउ रवि-णंदणु रहिउ वलावरिउ तो पभणइ कुरुव-णराहिवइ हणु पंडव महसूयणेण सहुं गउ रवि-सुउ उप्परि अज्जुणहो रह सारहि सारहि पई भणमि घत्ता अहो तावणि अमरिस-कुद्धउ गज्जहि अणाय-परमत्थउ कह कह-व वयणु पडिवण्णु तहो हय हंस-सम-प्पह जुत्त रहे मद्दाहिउ धुरहे परिट्ठियउ रहु चलिउ सव्व-पहरण-भरिउ जय णंद वद्ध चंपाहिवइ तिह करि जिह वसुमइ होइ महु णं दुसहु माहु णव-फग्गुणहो कुंती-सुव जाम सव्व हणमि ८ णं वेसरि आमिस-लुद्धउ । को पंडव जिणेवि समत्थउ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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