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रिट्ठणे मिचरिउ दुजोहण-केरउ कज्जु महु तुहं कहि-मि कण्णु आयासे हुउ कत्थइ महिलउ जुप्पंति हले कत्थइ माउल वंधुव्वरिय कत्थइ जेट्टाणिहे पइ-पलए कत्थइ विसिरहो पुज चडइ कत्थइ पाहुणहं घराइयहं कत्थइ गोमंसु भक्खु णरहं
को वोल्लइ तुम्हारिसेहिं सहुं कुल-धम्मु ण देसाचारु सुउ कत्थइ अणिअच्छिय ण्हंति जले परिणिजइ भइणि सहोयरिय घिप्पइ देवरेण पोत्ति गलए कत्थइ देवउले कविल पडइ चंडील भरंति तलाइयहं कम्मइं करंति घरे दियवरहं
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घत्ता
कुलधम्मेहिं देसाचारेहिं अण्णेहि-मि विविह-पयारेहिं । जगु जीवउ को-वि ण समप्पइ वरि एवंहिं रणु आढप्पइ॥
[१४] तो पंडव-वूहई वहु-विहइं पेक्खेप्पिणु गिरिवर-संणिहई पेक्खेप्पिणु मयगल-जलय-पह । गंधव्व-णयर-सम-सार-रह पेक्खेप्पिणु तुरय तरंग-सम सामंत सव्व संगाम-खम णिसुणेप्पिणु तूरइं भीसणइं सुर-दुंदुहि दारुण भीसणइं रवि-णंदणेण सुर-गिरि-अचलु । किउ वारुह-पत्तु वूहु पवलु दाहिणए पक्खे थिय तिण्णि णिव मागह-णरिंद-कियवम्म-किव संसत्तग वामए पक्खे थिय वे सउवल वूह-पक्खे थिय पच्छए दूसासणु दुविसहु थिउ तासु-वि पच्छए कुरुव-पहु
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घत्ता
पुणु आसत्थामु महावलु तहो वूहहो छेउ ण णावइ
मुहे कण्णु पड्डिय-कलयलु। पंडवेहिं दिडु गिरि णावइ ॥
तो अज्जुणु तव-सुएण भणिउ हरि-सालउ जइ हउं जेडु तउ लज्जावहि जिह णवि अप्पणउं
जइ पंडु-णराहिवेण जणिउ तो तिह करि लब्भइ जेण जउ लक्खिज्जइ वूहु वइरि-त्तणउ
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