________________
१४७
ऊणासीइमो संधि
[९]
जिह रवि-सुउ सोमय-सिंजयाहं णिय सुय-वह-वड्डिय-वेयणेण लइ जाह देव जहिं अंग-राउ गय विण्णि-वि तहिं ढुक्कंति जाम तिहिं सएहिं मत्त-तंवेरमाहं विहिं लक्खेहिं पवर-धणुद्धराहं सरवरेहिं विणासिय दस सहास कंवोय-णराहिय-णामधेउ
तिह भीम वियब्भ-महागयाहं वोल्लाविउ हरि कइ-केयणेण मारेवउ मई णंदण-सहाउ संसत्तग पच्छले लग्ग ताम सहसहिं चउदहहं तुरंगमाहं णरु वलिउ तहि-मि जालंधराहं णिय-वलहो करेवि जय जीवियास णं णहे उद्धाइउ धूमकेउ
८
घत्ता
सो धावंतु धणंजएण एक्के पाडिउ सिर-कमलु
तिहिं तिक्खेहिं सरेहिं समाहयउ। अवरेहिं छिण्ण वे वाहउ।।
[१०] णिय पय-पेक्खण-पक्खुहिय-खोणि पडिलग्गु कीरिडिहे ताम दोणि णाराएहिं णर-णारायणाहं धय विद्ध णियंतहं सुरवराहं सम्मोहहो गउ गंडीवधारि दोणायणि जमरूवाणुकारि विणिवारिउ किं अम्हारिसेण महुसूयणु पभणइ अमरिसेण कहिं तुहुंण धणंजउ किण्ण पाण किं करे गंडीउ ण किण्ण वाण किण्ण-वि भुव ण-विरहु णवि य वाह किं अण्णे केण-वि विद्ध राह किं अण्णे खंडवे जलणु दिण्णु किं अण्णे सुर-वलु सरेहिं भिण्णु
घत्ता अण्णे तालुयवम्म जिय गो-ग्गहे धणु परियत्तिउ अण्णे। ल्हसिउ जेण गुरु-णंदणहो मंछुडु तुहुं मारेवउ कण्णें ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org