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________________ रिहणे मिचरिउ १४६ तो विण्णि-वि कुरु-परमेसरेण ओसारिय सरवर-पंजरेण तहिं अवसरे वाहिय-संदणेण हक्कारिउ दुम्मयहो णंदणेण सिल-धोय-धार-कलहोय-भीस णारायण विसज्जिय पंचवीस कुरुवेण-वि पेसिय पंचसट्ठि पंचालहो पाडिय चाव-लट्ठि पण्णारह अवरें धणुवरेण पेसिय मायंदें पुरेसरेण तणु-ताणु स-तणु ताडेवि पिसक्के कह कह-विण कुम्म-कडाहे थक्के मुच्छाविउ कुरुवइ लद्ध-सण्णु दोहाइय-धणु लय पुणु-वि अण्णु पडिवारउ दसहिं णिडाले विद्ध मुह-कमलु णाई थिउ अलि-समिद्धु ८ घत्ता अवरु सरासणु करे करेवि सारहि चिंधु तुरंग महाधणु। सव्वई पीडेवि वि-रहु किउ कड्डेवि कुरुवेहिं णिउ दुजोहणु ।। [८] जं कुरुव-णराहिउ वि-रहु जाउ तं समुहु समुट्ठिउ अंगराउ सामंत-विहंगम रुलुघुलंत थिय कण्ण-महादुमे वीसमंत पंचालेहिं वेढिउ मुएवि खत्तु णं जगु जे गिलंतु कयंतु पत्तु अट्ठाहिय अट्ठहिं तोमरेहिं णं खद्धासीविस-विसहरेहिं चित्ताउहु सुवण्णु मइंदकेउ जउ सुक्कु सक्कु सर्लकेउ अट्ठमउ णराहिउ रोयमाणु वेइय-वह के वुज्झिउ पमाणु देवावि विचित्तु विचित्तकेउ भद्दाउहु रोयणु सीहकेउ ओए-वि अवर-वि चंपाहिवेण विणिवाइय रणउहे णिक्किवेण घत्ता हय-गय-रहंग चूरंतु रणे धरेवि ण सक्किउ पंडव-लोएं। कण्णु वियंभिउ कवणु जिह विसम-महासणि सर-संजोएं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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