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चउरासीइमो संधि
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[१३] तिहिं कण्णेण धणंजउ ताडिउ पंचहिं हरि-सण्णाहु विहाडिउ तो णरेण अवरेहिं पिसक्केहिं जलण-जाल-माला-लल्लक्केहिं मोहिउ सयलु सेण्णु गय कउरव सर-मोक्खेण थक्क-णिय-गउरव पेक्खंतहं सुर-किण्णर-जक्खहं घाइय विण्णि सहस पयरक्खहं पर उव्वरिउ दिवायर-णंदणु स-धणु स-वाणु स-तोणु स-संदणु चेयण लहेवि अणेय-पमाणेहिं विद्ध किरीडि थणंतरे वाणेहिं एम परोप्परु समरु पढुक्कर सर-जालोलिहिं सव्वु झुलुक्किर दिसउ वलंति णहंगणु तप्पड़ गिरि कणंति महि-मंडलु कंपइ
घत्ता पर सव्वहो जणहो णियंतहो णयणई थियइं परिट्ठियई। सय वार वार मेल्लंतयहं देवहं कुसुमई णिट्ठियई॥
[१४] ताम फणिंद-फुरंत-फणावलि आइय चंडवेय-अद्दावलि वेण्णि-वि वाणमएहिं सरीरेहिं थिप्पइ सरेवि कण्ण-तोणीरेहिं तेण-वि लइय अणेय भुवंगम जाणिय महुमहेण उरजंगम णिय-सब्भाउ कहिजइ मंडवे जे पणट्ठ डझंतए खंडवे तो पच्छण्ण होवि अणुवंधे आइय पुव्व-वइर-संवंधे हणु हणु करि दु-खंड अण्णण्णेहिं अद्धयंद-खुर-थूणाकण्णेहिं जाम ण पइसरंति पइसरणेहिं रह-गुड-पक्खर-देहावरणेहिं जाव जणद्दणु अक्खइ पत्थहो ताम पधाइय रवि-सुय-हत्थहो
घत्ता महि कंपिय गयणु पलित्तउ धूमावलिय दिसामुहई। किय विण्णि-वि वे-खंडई णउ भुयंग पर-आउहइं॥
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