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________________ रिट्ठणेमिचरिउ १८८ ४ [११] भग्गवत्थु रवि-सुएण विसज्जिउ तेण सिलीमुह-जालु परज्जिउ सत्त सरई संतावइ तावणि तिण्णि-वि णर-णारायण-पावणि विलिहिय तिहिं तिहिं सरेहिं थणंतरे कुविउ किरीडि मालि तहिं अवसरे दसहिं पिसक्केहिं णिहउ सहावइ खुडिउ सीसु तालहो फलु णावइ सल्लु चउहिं कण्णु तिहिं ताडिउ धउ अवरेण कह-वि णउ पाडिउ छाइउ अंगराउ पडिवारउ णं दुक्कमेहिं दुक्कियगारउ णर-कर-पेसिएण वंभत्थे स-उरगु जगु जगडणहं समत्थे दस-गुण-सहसुप्पाइउ वाणहं विप्फुरंत-णक्खत्त-समाणहं घत्ता चउ-सयइं मत्त-मायंगहं दस सहस पवर-तुरंगमहं। रह अट्ठसट्ठि सय जोहहं किय आहार विहंगमहं॥ [१२] जिह णरेण सामंत महिंजय तिह रवि-सुएण णिहय वहु सिंजय वहु पंचाल मच्छ वहु सोमय कासि-करुस-चेइव वहु कइकय कालवट्ठ-वल्लरिय वियंभिय णरवर-मुक्क सरासण थंभिय गुणु गजंतु छिण्णु गंडीवहो पच्छई कासु जाइ धणु जीवहो वइहत्थिय-सएण हउ अज्जुणु सट्ठिहिं सिल-धोएहिं अणज्जुण्णु जावरु लेवि सरासणु सज्जिउ जिणेवि समत्थु महत्थु विसजिउ तेण-वि एंतें णहयलु छाइउ कण्णहो हत्थ-ताणु दोहाइउ पहर-विदुक्खिय कुरुव रणंगणे पक्खि -वि संचरंति ण णहंगणे घत्ता वारहहिं दसहिं पुणु सत्तहिं संसय-भावि चडावियउ। वहु मग्गण धणु ण पहुच्चइ तेण णाई चिंतावियउ॥ ४ कण" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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