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इकहत्तरिमो संधि तो विण्णाण-करण-गुण-जुत्ते विरइय माय हिडिंवा-पुत्ते अंवरु अरुणु करेप्पिणु मुक्कउ विजुल-वहलुजलिय-जलणुक्कउ ४ हा हे सर्दु महा-भयगारउ मुक्काउह तरु-गिरि-अंगारउ तिहि-मि के-वि ण परम्मुहिभूय वलेवि परिट्ठिय जिह जम-दूय कहिं-मि सिवउ विमुक्क-फेक्कारउ हुयवहु चित्त-णयण-पब्भारउ कहि-मि पणच्चियाइं हय-खंधइं णं सीसेहिं रिणु देवि कवंधइं
घत्ता एम स-चिंधु स-वाहणु कउरव-साहणु चूरिउ सिल-पाणेहिं । दिणमणि-सुएण घुडुक्कउ सज्झस-मुक्कउ जिणेवि ण सक्किउ वाणेहिं।।९
[२१] णिवडंति फुरंतई संमुहाई गयणहो णक्खत्त-समाउहाई वोल्लंति परोप्परु कुरुप्पहाणु सुरवर पवहंति ण जाउहाणु कल-किंकिणि-माला-मुहलियंग हय कण्णहो केरा वर तुरंग अण्णहिं रहे चडिउ पयंग-जाउ जणु जूरिउ चूरिउ अंगराउ भो भाणव जइ तुह अत्थि सत्ति तो मेल्लेवि वासवयत्त सत्ति जा रक्खिय कारणे अज्जुणासु सा करउ हिडिवा-सुय-विणासु पट्टविय तेण हउ जाउहाणु वढंतु-वि गिरिवर-परिपमाणु आगासहो पडिउ पसारियंगु अत्थमिउ णाई वीयउ पयंगु
घत्ता तेण सयं भू-पत्ते भीमहो पुत्ते अक्खोहणि संचूरिय। पंडु-सुयहुं भउ लाइउ पर-वलु खाइउ खगहं मणोरह पूरिय ।।
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। घुडुक्कावह[-णामो इमो] इकहत्तरिमो सग्गो।।
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