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रिट्ठणे मिचरिउ
[१८] तो तारा-मंडल-ढुक्कएण णासिय रिउ-माय घुडुक्कएण दरिसाविउ किउ कडवंदणेण पाहाण-वरिसु वग-णंदणेण समरंगणे कोव-वसंगएण तमि-सरिहिं छिण्णु भीमंगएण पुणु जुज्झिय सव्व-महाउहेहिं पुणु वर-तुरएहिं पुणु कररुहेहिं पुणु करण-विसेसेहिं दूसहेहिं पुणु कंठग्गह-केसग्गहेहिं लद्धावसरेण अलाउहासु असि दुहिय लेवि सिरु छिण्णु तासु सवडंमुहु दुजोहणहो घित्तु अण्णु-वि तिहिं रुहिरंजलिहिं सित्तु फलु एउ एहु रसु दुण्णयाहं दक्खवइ सव्व-वंधव-सयाहं
धत्ता
पेक्खेवि पंडव-किंकरु भिडिउ भयंकरु रह-गय-तुरय-वरेण्णइं। कंठ-परिट्ठिय-जीयइं पाणहं भीयई णट्टइं कउरव-सेण्णइं॥
[१९] रवि-सुएण ताम जिउ पंड-वलु। मंदरेण महिउ णं उवहि-जलु पंचाल मच्छ कइकय पवर सोमय सिंजय पंडव अवर ते दसहिं दसहिं मग्गणहिं हय । णं घण-धारें हय वसह-गय पर थक्कु घुडुक्कउ एक्कु जणु गजंतु णाई णहे पलय-घणु अवरोप्परु छइउ णिरंतरह वइहत्थिय-वच्छदंत-सरहं कण्णियहिं वराह-कण्णा-सयहिं । णालीयहिं चामीयरमयहिं तावणिहिं तुरंग चउक्कु हउ पुणु अंतर-ठाणहो भइमि गउ दस दिसु केत्तहिं-वि ण दीसियउ कउरवेहिं कण्णु आकोसियउ
घत्ता
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णउ जाणहं कह होसइ काई करेसइ णिसियरु अमरिस-कुद्धउ। जीविउ दुक्करु दीसइ कहो किर सीसइ कुरुवइ संसय-छुद्धउ॥
[२०] कुरु-परमेसरेण आदण्णे सयल दिसा-णिवंधु किउ कण्णे लोयण-गोयरु वाणेहिं छाइउ घोरु तमंधयारु उप्पाइउ
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