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________________ छासट्ठिमो संधि किय सच्चइ णर-णारायणहं कुढे लग्गंतउ णिविउ। गुण-वयणेहिं भीमु जुहिट्ठिलेण तिहि-मि गवेसउ पट्ठविउ॥ एत्तहे सिणि-णंदणु मिलिउ णं जम-दंडु समावडिउ। एत्तहे कुरुव-राउ चलिउ पंडव-साहणे अन्भिडिउ ।। ८ तो दुमय-विराड धणुद्धरेण हय सर-सएण वाहत्तरेण विहि भल्लेहिं रायहो छिण्णु धणु पुणु पंचासिहिं रणे वणिउ तणु मच्छाहिउ तीसहिं उरे लिहिउ धठ्ठज्जुणु वीसहि विहलु किउ दस-सरेहिं परजिउ पवण-सुउ सहएउ णउलु तिहिं तिहिं तणउ पंचाल-पुत्त तिहिं तिहिं जे जिय अवर-वि सामंत णिरत्थ किय वलु सधणु वणिउ वइरिहिं तणउं पुणु गउ थाणंतरु अप्पणउं जहिं अज्जुणु ढुक्कु जयद्दहहो णं पलय-महाधणु हुयवहहो एत्तहे-वि णवर दोणायरिउ | पंचाल-पवले वले उत्थरिउ सरवरेहिं विहत्थी-मेत्तएहिं करिवर-कुंभत्थल-भेत्तएहिं घत्ता वले जले थले णहयले दिसि-वलये सर पज्जुण्णे दरिसियउं । सो दीसइ कवणु पएसु ण-वि जेत्थु ण दोणे वरिसियउ॥ [२] सो ण तुरंगमु सो ण गउ ण-वि रहु ण-वि पहुण-वि य धउ। रण-मुहे को-वि ण उव्वरिउ जो ण दोण-वाणेहिं भरिउ ।। तं अलमल-मयगल-रव-मुहलु रह-चक्क-किलामिय-धरणियलु तुरमाण-तुरंगम-चलण-वलु धय-चिंधालुंखिय-गयणयलु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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