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पंचसटिमो संधि [२२] पुच्छिउ सेणिएण तो गणहरु कहि महु पहु संदेहु महत्तरु सच्चइ जो तियसह-मि ण जिज्जइ कंठहो पाउ केम तहो दिज्जइ कहइ महा-रिसि मागहणाहहो तिविह-परम-सम्मत्त-सणाहहो पुरु पउलासु णामु तं देवउ भुंजइ सयल-राय-किय-सेवउ तासु धीय देवय उप्पण्णी गुण-विण्णाण-कला-संपुण्णी णियय-सयंवरे वहु-अवलेयहो घत्तिय ताए माल वसुएवहो धाइउ सोमयत्तु वर-वाएं पडिवाउ जुज्झे सिणि-राएं दिण्णु पाउ गले कह व ण मारिउ रोहिणि-वल्लहेण विणिवारिउ लज्जेवि कह-वि पड्डु वणंतरे दइवी वाणि समुट्ठिय अंवरे जो पहु जेट्ट-पुत्तु तउ होसइ सो सिणि-सुयहो पाउ गले देसइ
घत्ता तें कजें सच्चइ अहिहविउ समर-काले भूरीसवेण। उच्चाइउ लेवि सयं भुएहिं जिह गोवद्धणु केसवेण ॥ - ११
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए
पंचसट्ठिमो सग्गो।।
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