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________________ ४ रिट्ठणेमिचरिउ [२०] जाम ण मुच्चइ सच्चइ पाणेहिं लइ विभच्छ ताम रिउ वाणेहिं भण्णइ किरीडि अकज्जु ण किज्जइ खत्तु मुएवि केम पहरिज्जइ तो सहसत्ति कुविउ णारायणु दुद्दम-दाणविंद-विणिवायणु कवणु खत्तु जहिं विसु संचारिउ कवणु खत्तु जहिं जउहरु वालिउ कवणु खत्तु जहिं किउ केस-गहु । कवणु खत्तु जहिं मंडिउ गो-गहु कवणु खत्तु जहिं मिलेवि तिगत्तेहिं तुहं एक्कल्लउ लयउ अणंतेहिं कवणु खत्तु जहिं विहउ परिंदेहिं रुद्ध भीमु भयदत्त-गइंदेहिं कवणु खत्तु तुह णंदण-घायणे कवणु खत्तु घोडा-पय-पायणे घत्ता तो पत्थें अमरिस-कुद्धएण पेक्खंतहो तहो केसवहो। कुरुवइहे जयासालंभु जिह छिण्णु वाहु भूरीसवहो । [२१] तो परिहरेवि जणद्दण-भायरु धिद्धिक्कारिउ खंडव-डामरु णिम्मल-सोम-वंसे उप्पण्णहो सयल-कला-कलाव-संपुण्णहो ण-वि जुज्जइ तुम्हारिस-पुरिसहं एहु कम्मु पर महुमह-सरिसहं जे समुद्द-पच्चंत-णिवासिय णंद-गोव-सिणि-जायव-वंसिय भणइ पत्थु सव्वहो तणु तम्मइ जासु णियंतहो भाइ णिहम्मइ सोमयत्ति तं वयणु सुणेप्पिणु थिउ देवाहिदेउ चिंतेप्पिणु जासु ण कोहु ण कामु ण कामिणि जेण विवजिउ जम्मण-जामिणि जो संसार-मडप्फर-भंजणु णिक्कलु परमु णिराउ णिरंजणु सयल-भुवण-जण-मंगलगारउ जो रुच्चइ सो होउ भडारउ तं झाएवि णिय-देहब्भंतरे थिउ पाउग्गमे रणे सर-सत्थरे घत्ता तिहि तिविहेण णीसल्लु किउ सिणि-तणयहो सउरिहे णरहो। देवाहिदेउ जिणु संभरेवि सग्गहो गउ वंभुत्तरहो।। ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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