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________________ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता विससेणु ताम सिणि णंदणेण वच्छत्थले चम्म- रयणु भरेवि [५] सिणि-णंदणेण घिवेप्पिणु कंडई दूसासणेण लेवि ओसारिउ जायवेण विणिवारिउ संदणु अण्ण रहे आरुहेवि पधाइउ दुमय - दुहिय - दोमइ - दायाएं पवण-सुएण लइउ सउ सट्ठिहिं सत्तहिं माहवेण पडिवारउ कण्णें मग्गण तिउण विसज्जिय - छिण्णई सिरई सकुंडलई जत्तारिहिं रह रहवरेहिं Jain Education International घत्ता छिण्ण महाउहु वि-रहु किउ । - खग्ग- हत्थु जमु जेम थिउ । असिवर - फरई कियइं वे-खंडई सव्वेहिं अंगराउ परिवारिउ हउ णिडाले तिहिं दिणयर-णंदणु धट्ठज्जुणेण दसहिं पच्छाइर पहउ पंचहत्तरि णाराएं णउलेण तीसहिं सरवर- लट्ठिहिं अट्ठहिं परइ पंडव - धारउ दसहिं दसहिं ते सव्व परज्जिय - लुयई सरीरई स कवयई । रहियां तिणि सय हयई । १३६ [६] कोतिहिं वाल- भावे उप्पण्णहो धाइ धम्म- पुत्तु तो कण्णहो वेण्णि-वि रण-पंकय-फुल्लंधुय वेण्णि-वि पंडु-पुत्त-जेट्ठाणुय विणि- वि समर - सएहिं विणिवारिय विण्णि-वि विहिं वलेहिं परिवारिय विण्णि-वि रहवरेहिं सोवण्णेहिं विणि-वि हहिं हंस - छवि - वण्णेहिं ४ विण्णि-विकणय- किणंकिय-चावेहिं विण्णि-वि सरेहिं समुज्जल-भावेहिं विण्णि-वि वज्जंतेहिं वाइत्तेहिं विणि-वि चिंधेहिं वण्ण-विचित्तेहिं तो तव - णंदणेण पच्चारिउ फेsमि समर-सद्ध इह थक्कहि मित्त कहिं जाहि अमारिउ लडु पहरु पहरु तिह जिह रणे सक्कहि For Private & Personal Use Only ८ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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