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________________ अट्ठहत्तरिमो संधि १३७ घत्ता पच्चारेवि एम जुहिछिलेण णहु सर-जालें छाइयउ। णाय-उलु णवल्लउ लोहमउ दइवें णं उप्पाइयउ॥ तं सर-जालु हणेवि सर-जालें दसहिं विद्धु चंपापुरि-पालें तव-सुएण णाराउ विसज्जिउ तेण थणंतरे कण्णु विहज्जिउ घुम्ममाणु ओणल्लु स-वेयणु कह-वि कह-वि पच्चागय-चेयणु करयले कालवट्ट विप्फारेवि धाइउ धम्म-पुत्तु हक्कारेवि पहिलउं चंदकेउ दोहाइउ वीयउ दंडधारु विणिवाइड वेण्णि-वि चक्क-रक्ख तव-तोयहो णिहया णियंतहो पंडव-लोयहो तीसहिं तव-सुएण चंपाहिउ तेणवइहिं सरेहिं मदाहिउ तिहिं तिहिं चक्ख-रक्ख विणिवारिय तेण-वि सट्टि वाण संचारिय घत्ता धणु छिण्णु छिण्णु देहावरणु विप्फुरंतु वहु-मणि-गणेण। णं णहु इंदाउह-मंडियउ णिवडिउ सहु तारायणेण ।। [८] पाडिए कवय-चावे स-कसाएं _आयामेप्पिणु पंडव-राएं सत्ति विमुक्क झत्ति राहेयहो णं अडयण विड-भड-संकेयहो तेल्ल-धोय-घंटावलि-मंडिय सत्तहिं सायएहिं स विखंडिय तो सर मुक्क चयारि णरिंदें वाहु पसारिय णं गोविंदें रवि-तणएं तुरमाण तुरंगम छिण्ण-पक्ख किय णाई विहंगम णड्डु जुहिट्ठिलु सहु णिय-सेण्णे पच्छए रहवरु वाहिउ कण्णे जइ सच्चमउ राउ तो जुज्झहि थाहि थाहि कहिं जायवि सुज्झहि भीमु णउलु तुहुं तिण्णि-वि भग्गा संढ होवि सुहडत्तणे लग्गा अच्छइ एक्कु पत्थु मारेवउ हरिणु जेवं सहएवु धरेवउ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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