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________________ रिठ्ठणे मिचरिउ १३८ घत्ता तो मारुइ अमरिस-कुइय-मणु पंचाणणु जेवं पंच-णहहो उग्गय-गरुय-गयाउहउ। धाइउ कण्णहो संमुहउ॥ ताम सल्लु वोल्लाविउ कण्णे वाहि वाहि रहु दाहिण-कण्णे जहिं गज्जइ गंडीव-धणुग्गुणु जहिं संसत्तग-साहणे अज्जुणु मद्दाहिवइ कहइ किह वाहमि अग्गए पत्तु विओयरु चाहमि सीह-महाधउ वाहिय-संदणु किय-गय-घड-भड-थड-कडवंदणु ४ पहु-परिहव-पड-पक्खालण-मणु णिय-सुय-वह-कसाय-फुरियाणणु कोवें अंतगु हुयवहु तेएं सूरु पयावें खगवइ वेएं भणमि सउरि जाणमि वलवंतउ णिसियर-णियरु जासु अत्यंतउ कीय-कुल-कयंतु कुरु-केसरि वाहि वाहि रहु भीमहो उप्परि घत्ता जुज्झेवउ एण समाणु तुह सल्ल णिरारिउ आवडइ। किए पाराउट्ठए पवण-सुए णरु अप्पणु जे समावडइ ।। [१०] तो जत्तारें वाहिय-रहवरु तावणि पावणि भिडिय परोप्परु एकंतरिय वे-वि कोंती-सुय वेण्णि-वि परिह-पलंव-महाभुय वेण्णि-वि स-सर-सरासण-पहरण वेण्णि-वि दुद्दम-दणु-दप्प-हरण वेण्णि-वि पर-वल-पवल-वलद्धय वेण्णि-वि करिवर-कर कहरिद्धय ४ वेण्णि-वि कंचण-कवयालंकिय वेण्णि-विघण-घण-घाय-किणंकिय वेण्णि-वि सल्ल-विसोय-पुरीसर वेण्णि -वि चंपापुर-परमेसर वेण्णि-वि कुरुवइ-तवसुय-किंकर वेण्णि-वि सरहस सउरि-विओयर वेण्णि-वि समर-सएहिं अभग्गा वेण्णि-वि विजु-पुंज सम-भग्गा ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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