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________________ अट्ठहत्तरिमो संधि घत्ता णिय-णिय-पहरेवउं परिहरेवि पेक्खा थिय कुरु-पंडव । सर-णियरंतर-जूरंतएहिं पर सुर वहुएहिं दिट्ठ णिव ॥ । [११] विहि-मि परोप्परु ताडिउ वाणेहिं णवहिं णवहिं वाणेहिं अप्पमाणेहिं पवण-पुत्तु हउ थूण्णाकण्णे ___पडिवउ छिण्णु सरासणु कण्णे अवरु लेवि धणु रक्खस-काएं उरयडे भिण्णु कण्णु णाराएं मुच्छाविउ ओसारिउ सूएं दुजोहणेण विलक्खीहूएं पेसिय दस कुमार एक्कोयर थाहि थाहि कहिं जाहि विओयर वेढिउ सव्वेहिं णीसावण्णेहिं पंचासहिं रहेहिं सोवण्णेहिं तेण-वि पंचहिं पंच वियारिय पंच भग्ग कह कह-वि ण मारिय धाइउ चंपाहिउ पडिवारउ राइहिं थियउ णाई अंगारउ घत्ता रणे रहवर-सिहरे परिट्ठियहो वग-हिडिंव-जमगोयरहो। तंवेरमु जिह तंवेरमहो रवि-सुउ भिडिउ विओयरहो ॥ ८ [१२] तो समरंगणे णीसावण्णे मरु मरु पहरु कयंतें चोइय वियडु विभच्छु सुवच्छु सुभव्वउ एम भणेवि सिलासिय भासर भीमें सत्त दसारुण-तोएं पडिय णिरत्थ णिहालिय सल्ले भीमें परिहु भमाडेवि घत्तिउ अवरु भर-क्खमु धणु विप्फारेवि पवण-पुत्तु वोल्लाविउ कण्णे तिह जिह पंच कुमार विओइय अवरु सुमुक्कहु कुरु-कुल-पव्वउ णव राहेएं मुक्त महासर थरहरंत गय गयणाहोएं छिण्णु सरासणु अवरें सल्ले णिउ सय-सक्करु करेवि णिहंतिउ(?) छाइउ सरेहिं कण्णु पच्चारेवि ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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