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________________ १३५ अट्ठहत्तरिमो संधि पत्ता ण मरइ मयरहरु तिसाइउ णइव पयावइ भुक्खियउ। अप्पहु ण सक्कु णिद्धणु धणउ णउ परमप्पउ दुक्खियउ॥ [३] तो कसाउ वट्टिउ रवि-णंदणे जोत्तिय हंस-वण्ण-हय संदणे सच्चसेणु रहचक्कहो रक्खणु थिउ णहसेणु अण्णत्तहे रक्खणु पुट्ठिपालु विससेणु थवेप्पिणु सल्ल महारह-धुरहे धरेप्पिणु धाइउ अंगराउ पंचालहं कइकय-करुस-कासि-महिपालहं ४ वेइव-सोमय-सिंजय-मच्छहं एवावरह-मि कर-परिहच्छहं पंचवीस पंचाल वियारिय सत्तरि सत्त भद्द-करि मारिय जाई जाइं णिय-णाम-पगासई णिहयइं चेइहिं सयइं सहासई भाणु स-चित्तभाणु विणिवाइउ वीरु स-वीरसेणु-वि णिवाइउ सेणाविंदु णरिंदु पिसक्केहिं पंच-वि एम पहय एक्कक्केहिं घत्ता तहिं अवसरे धाइउ पवण-सुउ वाहिय-रहु धुवंत-धउ। उज्झिय-करु पेल्लिय-पवर-तरु णाई गइंदहो मत्त-गउ॥ ताम सुसेणे समरे सुधीमहो छिण्णु सरेण सरासणु भीमहो अवरु लेवि तेण-वि तहो पाडिउ पडिवउ दसहिं थणंतरे ताडिउ तेहत्तरिहिं कण्णु विणिवारिउ दसहिं सुभाणुवंतु ओसारिउ तिहिं तिहिं किव-कियवम्म परज्जिय छहिं छहिं सउवल ओए विणिज्जिय ४ दूसासण तिहिं भल्लिहिं भेसिउ अवरु सुसेणहो उप्परि पेसिउ चंपाहिवेण छिण्णु असिधारउ तेहत्तरिहिं कण्णु पडिवारउ णउलु सुसेणे पंचहिं तच्छिउ वीसहिं मद्दि-सुएण पडिच्छिउ विहि-मि परोप्परु छिण्णइं चावई विण्णि-वि थिय सरीर-अपयावई ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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