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अट्ठहत्तरिमो संधि
कण्णज्जुण अग्गए देवि रणे णरवर-पेसिय-वाहणई। अभिट्टई दिणमणि-उग्गमणे कुरुवइ-तवसुय-साहणई।
[१] भिडियइं वलइं वे-वि वल-सारइं उठ्ठिय दारुण हणहणकारई वहल-धूलि-धूसरिय-सरीरइं दर-विद्दविय-धराधर-धीरइं काहल-कुल-कोलाहल-करणइं पह-सम्माण-दाण-संभरणइं अवहत्थिय-णिय-पुत्त-कलत्तइं _णिब्भर-रणसिरि-रामासत्तई दंति-दंत-णिहसुट्टिय-जालई हरि-खर-खुर-खोणिय-पायालई रह-रहंग-चिक्कार-रउद्दई चामर-मारुय-सुसिय-समुद्दई पहरण-पहर-वियारिय गत्तई रत्त-तरंगिणि-रेल्लिय-छत्तई
असिवर-बिजुजोइय-गत्तई विरइय-सर-मंडव-सर-सयणइं संताविय-वसंग-पडिचक्कई दुद्दम-दुव्विसहइं दुल्लखई
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घत्ता
धयरट्ट-पंडुसुय-साहणई एम परोप्परु भिडियाई । णं विहि-वसेण णह-महियलई विण्णि-वि एक्कहिं घडियाइं॥
[२] ताम तुरय-तंवेरम-वाहणे भिडिउ पत्थु संसत्तग-साहणे हणइ हणेरु भीरु मंभीसइ सव्वसाइ सव्वत्तहे दीसइ सव्व-दिसेहिं सव्व-मायंगेहिं सव्व-रहेहिं सव्वहि-मि तुरंगेहिं रिउ पेक्खंति महासर-जालई णं उर-जंगम-कुलई करालई पभणइ कण्णु पेक्खु मद्दाहिव जालंधर-णारायण-पत्थिव रुद्ध धणंजउ एकु अणंतेहिं णं दिणमणि घणे हैं वरिसंतेहिं तो तावणि वि वुत्तु जतारें णरु ण धरिजइ खंधावारें पवणु ण केण-वि पोट्टले वज्झइ चित्तभाणु इंधणेहिं ण डज्झइ
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