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असीइमो संधि
घत्ता वलई अणंतई महु एकहो रणे आभिट्टई। कियई मइंदेण करि-कुल इव भग्ग-मरट्टइं।।
मई सर-सीरिय पवर तुरंगम छिण्णइं चिंधई चामर-छत्तई ताम दिवायर-रह-सम-संदणु रह पंचास तुहारा चूरेवि सरहसु महु सवडम्मुहु धाइउ अट्ठ महारह पहरण-भरिया जे जुझंति पउहर णं देतिहिं ते उड्डाइय सव्व रणंगणे
भग्ग रसंत मत्त तंवेरम पंच सयइं रहवरहं विहत्तई स-सर-सरासणु कुरु-गुरु-णंदणु दुजोहणहो मणोरह पूरेवि णं गयवरु गयवरहं पराइड णं गिरिवर-तरु-णियर वावरिया अट्ठहिं अटेहिं पर-वल देतिहिं णं दुव्वाएं घण गयणंगणे
घत्ता
सरेहिं भरेप्पिणु संदेह-भावे पइसारिउ। उवहि व रामेण कह कह व दोणि ओसारिउ॥
[८] ताम विओयरेण मय-भेभल भग्ग गयासणि-घाएहिं मयगल पच्छए ओसारिउ दुजोहणु सिणि-णंदणेण सउणि कलि-रोहणु सत्त सयइं चूरेवि चंपावइ महु थाणंतरु जाम ण पावइ तो उच्छलिय वत्त चउ-पासहो किउ रणे रवि-सुएण तणु-सेसउ तेण णाह हउं आउ गवेसउ भणइ अजायसत्तु किह धीरेहिं णर-गंडीव-वाण-तोणीरेहिं अज्जुणु किण्ण णाउ किउ अण्णहो भज्जइ जेण मडप्फरु कण्णहो किं णक्खत्तणेमि सेयासहो जुज्झइ भीमु वे-वि किह णासहो कवण तउ ण सामग्गि धणंजय किं धणु किं ण वाण रणे दुज्जय
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