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रिट्ठणे मिचरिउ
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घत्ता दिडु जुहिट्ठिलु हरि-विजएहिं सामल-देहेहिं। कंचण-गिरिवरु मेहागमे णं विहिं मेहेहिं ।।
[५] णर-णारायण णिएवि जुहिट्ठिलु तुट्ठ सु? णिय-रढुक्कंठुलु मंछुडु णिहउ दिवायर-णंदणु आइउ पत्थु तेण स-जणद्दणु साहु साहु तोसिय-पवरामर पंडव-संड-खंडववण-डामर साहु साहु हरि गिरि-सिर-धारा कह-वि जियंतें दिलु भडारा कहि कहि कण्णु केम विणिवाइउ । जेण महारउ रहु दोहाइड जेण तुरंग भग्ग रहु खंडिउ सूउ स-चक्करक्खु मुउ छंडिउ जो सुसेण-विससेणहिं रक्खिउ पंडव-कलह-केलि कुरु-पक्खिउ जो अणुदिणु अप्पाणु पसंसइ अज्जुणु हणमि पइज्ज पगासइ
घत्ता तेरह वरिसइं जसु भइयए णिद्द ण आविय । तहो राहेयहो किह थरहरंत सर लाइय॥
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जसु भएण वणंतरे मुत्ता जेण कवड-दुंदुहि पाडाविय जेण पुत्तु कुरु-जंगल-मच्छहो जसु देव-वि अदेव रणे रुट्ठहो । भणइ धणंजउ रह-गय-वाहणे जहिं तिगत्त-संसत्तग-लक्खई जहिं णारायण-गण आपमाणा कुंकुण-तामलित्त जहिं पच्छल
पंडव जेण संढ-तिल वुत्ता दोमइ दासि भणेवि कड्ढाविय धणु लेवाविउ पट्टणे मच्छहो तहो सिरु पाडिउ किह पइं दुट्ठहो अच्छिउ हउं रमंतु रिउ-वाहणे जहिं जालंधर-वलइं असंखइं जाहिं हिरण्णपुर-वासिय राणा कीर कुणिंद णीर सम्मेहल
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