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रिट्ठणे मिचरिउ
किं ण महारहु किं ण जणद्दणु
घत्ता
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किंण वाहु किं तुहुंण धणंजउ किंण कणिड्डु हिडिंवा कंतहो किं ण पंडु - कुंतिहे उप्पण्णउ किं ण दोणु गुरु सीसुण सच्चइ राहण विद्ध भमंति णहंगणे सुरह णियंतहं हिय णिवाय - कवय ण महाहवे धणु णणियत्तिउ जिउण पियामहु
दण खंडउ
घत्ता
जइ आसंकि
तो सई जुज्झइ
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कंण विहय किं ण महद्धउ । जं रवि-सुण उद्धउ ॥
तहो तोसिय- कुरुव- णरिंदहो । गंडीउ देहि गोविंदहो ।
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ड्ड मंडलग्गु तो पत्थें कहे कहो-वि कोसु किं खंडउ किं महु किं णिययहो किं रायहो जो प म गंडी विकत्थइ मं धरि धर-धराधर-धारा भइ जणद्दणु गुरु ण वि हम्मइ haणु धम्मु कि आमिस-भक्खणे कवण पइज्ज वंधु - विद्धंसणे
किमु वा संग-संगु सयरज्जउ किं ण-वि भइणिवइउ अनंतहो किं ण पुरंदरु तउ सुउपसण्णउ जेम कण्णु जम-रुण वच्चइ दोमइ लइय ण मंड रणंगणे मेहण भग्गण किउ सर - मंडउ लग्गु ण कुरुव- रिंद - पराहवे उभयवत्तु ण वहिउ जयद्दहु
पुच्छिउ महुमहेण परमत्थें कहो जलणिहि जले तुट्टु तरंडउ रेण वुत्तु सिरु पाsमि आयहो सो विणासु अप्पाणहो पत्थइ पुज्जउ अज्ज पइज्ज भडारा
कसाएं रहो गम्मइ कवणु असच्चु पाणि-परिरक्खणे कवण भत्तणु यिय- पसंसणे
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