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________________ रिठ्ठणे मिचरिउ ६२ ४ वाहित्तु असेसहिं थाहि थाहि चंपाहिव रहवरु वाहि वाहि सव्वहं अणत्थहं तुहु-मि मूलु तुहुं वंधव-सयलहं हियय-सूलु तुहुं वीसु तुहुं जउहरु जलण-जालु __ तुहुं जूउ कय-गहु वसण-कालु तुहं गोग्गहे तुहं जि असंधि-कज्जु तुहं कउरव-लोयहो पलउ अज्जु णारायहिं छाइउ दुब्भेवणेवि(?) सहसत्ति णिवारिय तेण ते-वि रह खंडिय पाडिय णरवरिंद हय हय गय गय णागय गइंद दुजोहणु पभणइ पेक्खु पेक्खु पडिपीडिउ कण्णे जिह विवक्खु गुरु-तोय तो-विणावडइ तुज्झु देव-वि अदेव जइ देहि जुज्झु घत्ता जाहि समाउलु किं आउलु आयहो होहि सहिजउ। पई किव-कण्णहिं अपसण्णहिं कहिं धम्मु कहिं धणंजउ॥ तो दूरायड्डिय धणु-गुणाहं आभिट्ट जुज्झु कण्णज्जुणाहं दुज्जोहण-तवसुय-किंकराहं सुरवर-करि-कर-दीहर-कराह विणिवद्ध-गोह-ताणंगुलीहिं सुरपहु-वि मुक्कु कुसुमंजलीहिं कल-किंकिणि-मुहलिय-कडियलाहं आवरणावरिय-उरत्थलाहं विप्फुरिय-दिव्व-मणि-कुंडलाहं सर-णिवह-पिहिय-रवि-मंडलाहं णारायहिं विण्णि-वि वावरंति णं धारें जलहर उत्थरंति णं दाणेहिं मत्त महा-गइंद णं दीह-णहर-पहरेहिं मइंद णं सिंगेहिं महिस महा-रउद्द णं पवर-भुवंगेहिं वेण्णि रुद्द घत्ता णीवण्णहं णर-कण्णहं विहि-मि परोप्परु वाणेहिं । जाउ रणंगणु गयणंगणु छाइउ अमर-विमाणेहिं ।। ८ रवि-सुएण विद्ध समुहुत्थरंतु चउ तुरय वियारिय अजुणेण तिहिं फग्गुणु तिहिं गुणु तिहिं अणंतु धणु हत्थहो पाडिउ सहु गुणेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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