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घत्ता
खत्तिउ गज्जइ तहो छज्जइ जो जुज्झइ अवियारेण ।
वंभण भोयणे रणग-रंगणे
तासु काई वावारेण ॥
तुहुं गुरु गुरु-णंदणु वंभयारि जुज्झेवि दस दिवस महा-रहेण दुज्जहणु दुहेव कियाहिसेउ सावेण सरेण वि जो णासंतु जयद्दहु धीरवेवि गुरु-सुउ अक्खोहणि हणइ जाम
समत्थु
संगाम - हरिण पई कवणु कज्जु किउ पभणइ तेरी लुहिय जीह
[३]
घत्ता
पेक्खेवि माउलु गुरु- कोवालु लइउ खग्गु गुरु-पुत्तेण ।
किं भडवाण
मरु घाएण
पामि सीसु निरुत्तेण ॥
ताव तुरंतउ रवि - सुउ जेत्त
अवरुप्परु उट्ठाउट्ठि जाम
चंपाहिउ पभणइ एउ एउ जाणिवइवसपुर - पहेण घरे भमइ ण जुज्झहि सामि - कज्जे रुदीस इंतउ रहवरेण मई घइं मारेवउ समरे पत्थु पणवेप्पिणु पभणइ कुरुव-राउ अवरोप्परु किं भड - मच्छरेण
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[४]
घत्ता
पहरंतउ
रणे तेत्तहे
णिय - सामिय- वले दोहावयारि
कि सुंदर कवणु पियामहेण
पंडवहं मरते दिण्णु उ तेण - वि विहि- वइरिहिं दिण्णु हत्थु ४ माराविउ पत्थइ भेउ देवि पंचह-मि मज्झे किण्णेक्कु ताम जुज्झहि पारक्कउ होवि अज्जु मरु पाएं पेल्लिवि लुणमि जीह
सत्तरिम संधि
दुज्जोहण मज्झे पड्डु ताम परमेसरु मा धरि घाउ देउ फलु एत्तिउ वंभण-संगण कलहिज्जइ जं मणु सइय सज्जे भिडु गज्जहि जेम मडप्फरेण एहु अच्छइ उज्झिउ धम्म- हत्थु गुरु-पुत्त होहि आहवे सहाउ सव्वहो पहरेवउ सहु णरेण
हय-गय-रह-सय-वाहणु । धाइउ पंडव - साहणु ॥
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