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सत्तरिमो संधि सारहि-सिरु खुडिउ महा-खुरेण विणिभिण्णु कण्णु उरे तोमरेण किउ कलयलु अमरच्छर-जणेण रहे किवेण चडाविउ दुम्महेण तहिं अवसरे हय-गय-रह-वरेण्णु दुजोहणु धीरइ णियय-सेण्णु मा भज्जहु वइरि-महा-भएण हउं जुज्झमि समउ धणंजएण किर एम भणेवि उत्थरइ जाम गुरु-णंदणु पेरिउ किवेण ताम धरे धरे रक्खे वउ कुरुव-राउ मा होसइ आयहो रणे पमाउ
घत्ता अम्हेहिं संतेहिं जीवंतेहिं पिहिवि-पालु किह धावइ। एक्के अंगेण सहु खग्गेण सयण-विहूणउं णावइ ।
[८] तो तेण धरिजइ कुरुव-राउ अप्पणु पहरेवउ कवणु णाउ वोल्लिज्जइ णर-परमेसरेण मई काइं जियतें महि-भरेण जो भण्णइ सण्णइ सो जि दुक्खु मुए मुए पाडिजउ वहरि रुक्खु वुच्चइ दोणायरियहो सुएण दुजोहण जुज्झमि तुह कएण जउ अवजउ विहि-आयत्तु होइ उप्पण्ण-णाणु किं अच्छि कोइ किं करहि जियंतेहिं कवणु कज्जु जइ भिडहि भडारा तुहुँ जे अज्जु दोणायणु एम भणेवि थक्कु भज्जंतु असेसु-वि वइरि-चक्कु दस दसहिं सरहिं पंचाल भिण्ण णं वलि रण-वणदेवयहे दिण्ण
पत्ता णाविय-खग्गए वले भग्गए कड्डिय स-सरु धणुग्गुणु। आसत्थामहो उद्दामहो थक्कु एक्कु धट्ठज्जुणु॥
रहसे परिवारिय-संदणेण उवजीवहि वंभणु होवि खत्तु किह एहिं वरायहिं किंकरेहि हउं दोणायरियहो पलय-कालु गुरु-सुएण णीवारिउ दुहइं देंतु
हक्कारिय दुमयहो णंदणेण पई घाइए दुरियागमणु कत्तु लइ जुज्झहो वे-वि महा-सरेहिं उच्चारेवि पेसिउ वाण-जालु णं अंविय-कंता-छोह देंतु
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