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________________ २४१ णवासीइमो संधि घत्ता भीमहो गय-घाएं विणु ववसाएं कुरुवइ जण्णवडेहिं पडिउ। वसुमइ वि रसोक्खई लइ णिय-सोक्खइं णं मरिसावउ आवडिउ॥ ९ ८ कह कह व समुट्ठिउ लउडि लेंतु णं करणइंजण्णअडेहिं देंतु णं अहि दंडाहउ सलवलंतु णं पक्खि अ-पक्खु पडिक्खलंतु णं णिड्डहंतु णयणाणलेण को संदु णिहम्मइ पक्खलेण कहिं गयउ आसि विस-जलण-जूवे दोमइ-केसग्गह-समय-भूवे हउ एवंहिं णिय कालेण खर्बु गउ एम भणंतु धरायलद्ध णिवडतें णिवडिय रय-णिहाय उप्पाय असेसहो जगहो जाय महि-कंपु दिवायर-छाय-भंगु आगासहो वरिसइ वहल पंसु स-रुहिर दह-कूव-तलाय जाय विवरीय वहाविय णइ-णिहाय उप्पाय-कवंधई भीयराई णच्चिय वहुय-कम-वहु-कराई घत्ता तहिं काले विओयरु वड्डिय-मच्छरु जहिं दुजोहणु तेत्थु गउ। पेक्खंतहं देवहं हरि-वलदेवहं वामें पाएं मउडु हउ॥ . [१८] जं मलिउ मउडु मारुय-सुएण भुयइंदाहोय-भीयर-भुएण तं धिद्धिक्कारिउ सुरवरेहिं णहयले महि-मंडले णरवरेहिं मच्छाहिव-सोमय-सिंजएहिं अवरेहि-मि लद्ध-महाजएहिं खत्तिय-कुले होएवि किउ अजुत्तु पाएण ण छिप्पइ रायउत्तु तो विज्जु-पुंजु जिह जलहरेण उग्गिण्णु महाहलु हलहरेण अमणूसउ मण्णेवि कामपालु किह पाएं छिप्पइ भूमिपालु सिरु णावेवि णिवारिउ माहवेण अवरोप्परु काई महाहवेण पंडवहं म उप्परि करहि रोसु अवराहहं केरउ सव्वु दोसु ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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