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________________ रिट्ठणेमिचरिउ २४२ घत्ता परिवड्डिय-मलहरु पभणइ हलहरु मुहु जोएवि दामोयरहो। हरि भायरु वुच्चहि तुहुं महु रुच्चहि तेण ण भिडमि विओयरहो॥ ९ ४ [१९] गोविंद गयागमे एम वुत्तु ण णिहम्मइ णाणि हेह्र जुत्तु(?) जिह जिह आहासइ सीर-धारि तिह तिह पवणंगउ कम्म-कारि सय वार करइ सिर-मउड-भंगु णिहुयउ जे णिहालइ सल्ल रंगु गउ णिय-थाणंतरु कामपालु जहिं जायव-मागह-भड-वमालु तव-सुएण णिवारिउ सीह-चिंधु । एक्कु-वि पहु अण्णु-वि परम-वंधु ण णिहम्मद वारंवार-वार दुज्जोहणेण सहुं गउ णिरार जगे वइरई मरण-णिवारणाई अवराई महंतई कारणाई अच्छेवउ अज्जु-वि विग्गहेण जुज्झेवउ सहुं रणे मागहेण मारेवउ सो पहु मद्दणेण दसकंधरु जिह रहु-णंदणेण पत्ता पई मई अवरेहि-मि जमल-णरेहि-मि समर-महाभर-उव्वहणु। दारावइ-पुरवरु तोसिय-सुरवरु पइसारेवउ महुमहणु ।। [२०] तहिं अवसरे पभणइ वासुएउ दुजोहणु दुम्मइ दुकिय-कम्मु माराविय जेण सहोयरा-वि जोइज्जइ मुहु-वि ण तणउ तासु आरूसेवि पभणइ कुरु-पहाणु दुव्वयणहो देंतहो वासुएव लइ एवंहिं किज्जइ काइं खेउ जहिं णिवसइ तहिं देसे-वि अहम्मु गुरु-पित्त-पियामह किंकरा-वि किं अच्छहुँ गम्मउ णिय-णिवासु को दुक्किय-गारउ पई समाणु सयदलई जीह मुहे ण गय केवं ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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