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________________ ५६ ८ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता पहरंते आसत्थामेण जोइयउ दुजोहणहो मुहु। किं होमि ण होमि तुहारउं किंकरु णाह णिहालि तुहं ।। [१४] तो दुजोहणेण वोल्लिज्जइ अण्णहो सुहड-लीह कहो दिज्जइ गुरु-वयणेहिं गुरु-पुत्ते विसेसिउ सउणि किरीडिहे उप्परि पेसिउ किउ गुरुमित्तु णीलु किववम्मउ दूसासणु णिकुंभु जयवम्मउ णंदसेणु कमलक्खु पुरंजउ दिढरहु सल्लु सयप्पणु संजउ ओय-वि अवर-वि पडिवलु दिण्णा धाइय रण-रस-रहसुभिण्णा वेढिउ तेहिं अखत्ते जुत्तउ एक्कु अणेक्कहिं मिलेवि धणंजउ ताव विओयर-सुएण स-संदणु दसहिं सरेहिं विद्ध गुरु-णंदणु मुच्छा-विहलंघलु रहे पाडिउ णं गिरि हरि-कुलिसाउह-ताडिउ घत्ता चेयण कह कह-वि लहेप्पिणु पुणु पडिवारउ घाइयउ। लक्खिज्जइ णिसियर-लोयणहिं णं खय-कालु पराइयउ॥ __ [१५] पीडिउ जाउहाण-वलु वाणेहिं पंडव-सेण्णु मुक्कु णं पाणेहिं दिट्ठि-वि को-वि धरेवि ण सक्कइ एक्कु घुडुक्कउ पर परिसक्कइ णिय जोत्तारु वुत्तु लहु तेत्तहे वाहि वाहि रहु गुरु-सुउ जेत्तहे तो सहस त्ति तुरंगम खेडिय णरवर रक्खु दंड जिम मोडिय दारुणद्ध-चक्कासणि मुक्की णं खयकाल-रत्ति उवढुक्की करणु देवि गुरु-सुएण लइज्जइ णं जयलच्छि मंड कड्डिज्जइ णं णव-वहु वरेण परिणिज्जइ णं सरि सायरेण आणिज्जइ भुयहिं भमाडिवि तहो जे विसज्जिय विजु जेंव गयणंगणे गज्जिय घत्ता कल-किंकिणि-घंटा-मुहलिय चंदण-चच्चिय लद्ध-जय। हरि सारहि संदणु चूरेवि पुणु पायालहो असणि गय॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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