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रिट्ठणे मिचरिउ
घत्ता पहरंते आसत्थामेण जोइयउ दुजोहणहो मुहु। किं होमि ण होमि तुहारउं किंकरु णाह णिहालि तुहं ।।
[१४] तो दुजोहणेण वोल्लिज्जइ अण्णहो सुहड-लीह कहो दिज्जइ गुरु-वयणेहिं गुरु-पुत्ते विसेसिउ सउणि किरीडिहे उप्परि पेसिउ किउ गुरुमित्तु णीलु किववम्मउ दूसासणु णिकुंभु जयवम्मउ णंदसेणु कमलक्खु पुरंजउ दिढरहु सल्लु सयप्पणु संजउ
ओय-वि अवर-वि पडिवलु दिण्णा धाइय रण-रस-रहसुभिण्णा वेढिउ तेहिं अखत्ते जुत्तउ एक्कु अणेक्कहिं मिलेवि धणंजउ ताव विओयर-सुएण स-संदणु दसहिं सरेहिं विद्ध गुरु-णंदणु मुच्छा-विहलंघलु रहे पाडिउ णं गिरि हरि-कुलिसाउह-ताडिउ
घत्ता चेयण कह कह-वि लहेप्पिणु पुणु पडिवारउ घाइयउ। लक्खिज्जइ णिसियर-लोयणहिं णं खय-कालु पराइयउ॥
__ [१५] पीडिउ जाउहाण-वलु वाणेहिं पंडव-सेण्णु मुक्कु णं पाणेहिं दिट्ठि-वि को-वि धरेवि ण सक्कइ एक्कु घुडुक्कउ पर परिसक्कइ णिय जोत्तारु वुत्तु लहु तेत्तहे वाहि वाहि रहु गुरु-सुउ जेत्तहे तो सहस त्ति तुरंगम खेडिय णरवर रक्खु दंड जिम मोडिय दारुणद्ध-चक्कासणि मुक्की णं खयकाल-रत्ति उवढुक्की करणु देवि गुरु-सुएण लइज्जइ णं जयलच्छि मंड कड्डिज्जइ णं णव-वहु वरेण परिणिज्जइ णं सरि सायरेण आणिज्जइ भुयहिं भमाडिवि तहो जे विसज्जिय विजु जेंव गयणंगणे गज्जिय
घत्ता कल-किंकिणि-घंटा-मुहलिय चंदण-चच्चिय लद्ध-जय। हरि सारहि संदणु चूरेवि पुणु पायालहो असणि गय॥
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