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रिठ्ठणे मिचरिउ
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घत्ता उव्वरिउ ण को-वि जियंतउ कह-वि कह-वि सोयाउरई। कंदंतइं धाह मुवंतइं पर चुक्कई अंतेउरई ॥
_ [१३] तं वयणु सुणेवि असुहावणउं गोविंदें किउ वद्धावणउं जइ अम्हहं सत्त-वि तेत्थु थिय आमिसहो रासि तो आसि किय तव-णंदणु पभणइ णिएवि मुहु लइ णच्चहि अम्हहं कवणु सुहु तो भायर इयर चयारि जण उद्धाइय अमरिस-कुइय-मण भीमज्जुण गय-गंडीव-धर सहएव-णउल असि-कुंत-कर णारायणेण पडिवंधु किउ सब्भावें अग्गए गंपि थिउ जइ जीविउ लेमिण मागहहो पइसरमि मज्झे तो हुयवहहो पत्थेण वुत्तु एत्तिउ करमि गुरु-सुयहो सिहा-मणि अवहरमि
घत्ता पइज्जावसाणे किउ कलयलु तूरइं हयई पयट्ट पहु। गय रयणि दिवायरु उग्गमिउ ताम सयं भूसंतु णहु॥
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इय रिट्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए। पंडव-वल-पलयकरो इक्काणवइमो सग्गो॥
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