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इक्काणवइमो संधि
घत्ता वलु घाएवि हुयवहु लाएवि सिरई लएप्पिणु णीसरइ। वाहिय-रहु पुण्ण-मणोरहु घरु जरसंधहो पइसरइ॥
[११] कुरु-जंगल-परिपालण-मणहो अग्गए खिवियई दुजोहणहो परमेसरु करि वद्धावणउं णिरवज्जु रज्जु लइ अप्पणउं सीहासणु छत्तइं-चामरइं उवसमियइं सव्वइं डामरइं उब्भावहि मणिमय-मंडविय किय सयल पुहवि णिप्पंडविय पंचह-मि सिरइं मई तोडियइं सुर-गिरि-सिहराइं व मोडियइं पेक्खेप्पिणु कुरुव-राउ भणइ को गुरुसुव पंडु-पुत्त हणइ अवरेहि-मि जेण णिरत्थ किय गंगेय-कण्ण-दोणहिंण जिय एयई पुणु कलुण-जणेराई सीसहं पंचालह केराई
घत्ता
हउं एक्के पवणहो पुत्तेण लउडि-पहारेहिं चूरिउ। को पंच-वि हणइ रणंगणे जाम ण हरि सर-पूरिउ ।
[१२] दुजोहणु एम चवंतु थिउ गुरु-तणयहो धिद्धिक्कारु किउ वद्धारिय-जय-जय-मंडवहं जाणाविउ केण-वि पंडवहं तव-तणयहो भीमहो अज्जुणहो । अणिरुद्धहो संवहो पज्जुणहो हलहरहो अणंतहो सच्चइहे गय-घाय णिएविणु कुरुवइहे सेणावइ आसत्थामु थिउ विक्खेउ णरिंदें पट्टविउ विद्दाविउ तेण सयलु सिमिरु सो ण भडु ण तोडिउ जासु सिरु धट्ठज्जुणु सवलु सिहंडि मुउ गुरु-सामिय-परिहव-पट्ट धुउ सोमय-सिंजयह-मि करेवि खउ पंचालहं सीसइं खुडेवि गउ
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