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________________ १६४ रिट्ठणे मिचरिउ तहिं काले किरीडि परावरिउ अवरोप्परु दिछु वणावरिउ पोमाइउ पवण-सुएण णरु वलु सयलु पधाइउ ताव परु परिवेढिउ गय-गंडीवधर णं मेहें हिमयर-अहिमयर अज्जुणेण णिवारिउ सप्फुरेहिं वइहत्थिय-वच्छदंत-खुरेहिं णाराएहिं तीरिय-तोमरेहिं णालिय-वाराह-कण्ण-सरेहिं थिर-थूणाकण्णहिं कण्णिएहिं अवरेहिं सिलीमुह वण्णिएहिं घत्ता कंपिउ कुरु-वलु जिह उवहि-जलु केत्थु वि साहारु ण वंधइ। दुग्घर-वासु जिह कुरु-णाहु तिह रणु तुट्ट तुट्ट पडिसंधइ॥ ८ ९ [८] भीमेण-वि भीम-परक्कमेण किउ स-सर-सरासणु भुय-जुयलु हय पंच सहास तुरंगमाहं दुइ लक्ख पयत्थहं किंकराहं परिसक्कइ मारुइ जहिं जे जहिं तो पडियारुद्धाओहणेण सउ भाइहिं धाइउ संमुहउ पावणिहे थणंतरे भरिय सर दस णाय-सहस वल-विक्कमेण कप्परिउ खुरुप्पेहिं कुरुव-वलु तदुगुण-मत्त-तंवेरमाहं सउ कणयालंकिय-रहवराह रुहिर-णइ पयट्टइ तहिं जे तहिं पट्ठविउ सउणि दुज्जोहणेण णं मत्त-गइंदहो मत्त-गउ भिंदेवि तणु-ताणु पइट्ट धर ८ घत्ता भीमें पाणहरु पट्टविउ सरु किउ सत्त-खंडु गंधारें। कोति-सुयहो तणउं वाणासणउं पाडिउ अवरेण कुमारे।। धणु अवरु लएवि धणुद्धरेण वाणासणु एक्के दुइहिं धउ जत्तारु चउहिं हय चउहिं हय सहस त्ति सत्ति मणे अट्ठविय सर सोलह मुक्त विओयरेण पंचहिं सउवलु वच्छयले हउ एवं तहो सोलह वाण गय स हिडिवा-कंतहो पट्टविय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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