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इक्कासीइमो संधि
सिल-सियहं सुवण्ण-पुंखधरहं णारायहं दुइ दस कण्णियहं परिपुच्छिउ पुणु-वि विओयरेण णासंति कासु कुरु-साहणाई सव्वुप्परि काई परिप्फुरइ धुरि कहइ णिसायर-डामरहो महुमह-मुह-कुहराऊरियहो
रहे सट्ठि सहास महा-सरहं परिसंख ण अवरहं वण्णियहं रणु वहिरिउ कहि कहो मलहरेण
ओहत्थई चूरिय-वाहणाई णं सुर-विंदु किरणइं करइ एहु सटु सुणिज्जइ जलहरहो अण्णु-वि सेण्णहो संचूरियहो
घत्ता
कणय-कइद्धउ मणि-मउड-गउ विप्फुरइ जासु दिहि देंतउ। सिहि-सिह-ससकरु गंडीवधरु एहु दीसइ अज्जुणु एंतउ॥ ८
तं णिसुणेवि रहसुच्छलियउ णर णंद वद्ध जिउ जाव धर णक्खत्तइं वसुह-वि दिसि विदिसि पइं होतें गंदइ पंडु-कुलु पइं होतें होसइ भू-भयहो पइं होतें सउरि सणेहमउ पइं होतें कोतिहे परम दिहि पई होते उण्णइ सुहियणहो
आणंदु पणच्चिउ पवण-सुउ गिरि-चंद-दिवायर-मयरहर जायइ गयणंगणु दिवसु णिसि पई होते आहवे हउं अतुलु आवग्गी वसुमइ तव-सुयहो पंचाल सुहद्दउ अइयवउ पइं होतें जमलहं जमल-णिहि पई होते खउ रवि-णंदणहो
८
घत्ता
तुहुं जस-महुयरउ अयरामरउ णिय-पगइए पंडुर-गत्तउ । अच्छउ जग-कमले दिस-वलय-दले सुर-गिरि-मयरहं(?) दासत्तउ ॥९
[७] तो भणइ भीमु परितुडु हउं लइ गाम चउद्दह दासि सउ रह तीस वीस साओग गय चालीस महाजाणेय हय
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