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________________ १६३ इक्कासीइमो संधि सिल-सियहं सुवण्ण-पुंखधरहं णारायहं दुइ दस कण्णियहं परिपुच्छिउ पुणु-वि विओयरेण णासंति कासु कुरु-साहणाई सव्वुप्परि काई परिप्फुरइ धुरि कहइ णिसायर-डामरहो महुमह-मुह-कुहराऊरियहो रहे सट्ठि सहास महा-सरहं परिसंख ण अवरहं वण्णियहं रणु वहिरिउ कहि कहो मलहरेण ओहत्थई चूरिय-वाहणाई णं सुर-विंदु किरणइं करइ एहु सटु सुणिज्जइ जलहरहो अण्णु-वि सेण्णहो संचूरियहो घत्ता कणय-कइद्धउ मणि-मउड-गउ विप्फुरइ जासु दिहि देंतउ। सिहि-सिह-ससकरु गंडीवधरु एहु दीसइ अज्जुणु एंतउ॥ ८ तं णिसुणेवि रहसुच्छलियउ णर णंद वद्ध जिउ जाव धर णक्खत्तइं वसुह-वि दिसि विदिसि पइं होतें गंदइ पंडु-कुलु पइं होतें होसइ भू-भयहो पइं होतें सउरि सणेहमउ पइं होतें कोतिहे परम दिहि पई होते उण्णइ सुहियणहो आणंदु पणच्चिउ पवण-सुउ गिरि-चंद-दिवायर-मयरहर जायइ गयणंगणु दिवसु णिसि पई होते आहवे हउं अतुलु आवग्गी वसुमइ तव-सुयहो पंचाल सुहद्दउ अइयवउ पइं होतें जमलहं जमल-णिहि पई होते खउ रवि-णंदणहो ८ घत्ता तुहुं जस-महुयरउ अयरामरउ णिय-पगइए पंडुर-गत्तउ । अच्छउ जग-कमले दिस-वलय-दले सुर-गिरि-मयरहं(?) दासत्तउ ॥९ [७] तो भणइ भीमु परितुडु हउं लइ गाम चउद्दह दासि सउ रह तीस वीस साओग गय चालीस महाजाणेय हय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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