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________________ १६२ रिट्ठणे मिचरिउ घत्ता पंडव-कुरुव-वलइं किय-कलयलई दिट्टइ णरेण पहरंतई। सुट्ठ छुहाइयए णिव्वाइए णं जममुहे कवलु घिवंतई॥ ९ __ [३] तहो मज्झे दिडु आओहणहो सच्चइ भिडंतु दुजोहणहो कियवम्में णउलु पडिफुल्लिउ विससेणु सयाणीयहो वलिउ सहएवहो सउणि समावडिउ धट्ठज्जुणु कण्णहो अन्भिडिउ किउ अकिउ सिहंडिहे उत्थरिउ सुअसवेण दोण-णंदणु धरिउ जुहमण्णुहो चित्तसेण्णु भिडिउ दूसासणु भीमहो कमे पडिउ सव्वुत्तम उत्तमोजु उइउ णं कालु सुसेणहो वि कुइउ तो दक्खवंतु दामोयरहो गउ अज्जुणु पासु विओयरहो पाहुणउ कियंतहो मित्तु जिह भंजंतु णरिंदहं माण-सिह ८ घत्ता कणय-कइद्धएण घडियद्धएण णिहयइं दस-सयइं तुरंगहं । चउ सय रहवरहं सहं हयवरहं सय सत्त मत्त-मायंगहं ।। [४] तो णिहय-णिसायर-गोयरेण णिय-सारहि वुत्तु विओयरेण तवतणयावास-पयत्ति-हरु कहि काइं चिरावइ भाइ णरु सु विसूरइ हियउ महु-तणउ परियाणमि ण परु ण अप्पणउ घरे जाउ जुहिट्ठिलु वणिय-तणु वीसमउ किरिडि स-महुमहणु हउँ एक्कु पहुच्चमि पर-वलहो गिरि मंदरु जिह जलणिहि-जलहो संचूरमि सेण्णइं जेत्तियई रहु जोयहि अत्थई कित्तियइं अक्खइ विसोउ वर-लद्धाइं सद्दूल-चम्म-ओणद्धाई वर-कम्मकार-परिमज्जियाई कलहोय-महारस-रंजियाई घत्ता णिसियर-मारणइं भय-कारणइं हरिहर-कमलासण-दत्तइं। अत्थि महाउहई जिह गहमहइं सोणिय-वस-मासासत्तइं॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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