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________________ इक्कासीइमो संधि खंडव-डामरेण महुमह मरइ महु वुच्चइ णरेण सो सुएण सहुँ परिहविउ जेण परमेसरु। परिरक्खइ जइ वि पुरंदरु ।। [१] गुणु छिण्णु जेण महु णंदणहो धउ पाडिउ पत्थिव-संदणहो पेक्खंतहो कियवम्महो किवहो सिर-कमलु खुडमि चंपाहिवहो अह जइ ण णेमि जम-सासणहो तो उप्परि चडमि हुवासणहो कल्लए समक्खु सव्वहुं जणहुँ णर-णरवइ-संति-पुरोयणहुं तवसुयहो समप्पमि वइसणउं भुंजउ कुरु-जंगलु अप्पणउं गउ एम भणेवि आरुहिउ रहे परिओसिय सुरवर सयल णहे तो उट्ठिउ वाउ पदक्खिणउ णं कण्णज्जुण रण-सक्खिणउ पासेइउ तो गंडीव-धरु ण उ जाणहुँ होसइ कवणु डरु घत्ता वुत्तु जणद्दणेण रिउमद्दणेण को मल्ल पत्थ तउ तिहुयणे। वीयराउ तहो तावहिं जिवहो करि तो वि पयत्तु रणंगणे॥ [२] पहरंतई ताव स-वाहणाई दिट्टइं कुरु-पंडव-साहणाई घाइय वाइत्त-वि तलपयई धुर-धवल-धूरि-धूसर-धयई धय-माला-किय-घण-डंवरई असि-जलण-जाल-जलियंवरई तरवारि-वारि-वारिय-हयइं सरथो रथेभ-थंभिय-गयई संदण-संदाणिय-संदणई एक्केक्कइं किय-कडवंदणइं संचूरिय-चामर-चिंधाई सोणिय-वाहिणि-वहंत-पहाई खुप्पंत-पत्ति-हय-गय-रहई कललंत-भूय-डाइणि-सयई णं दिण्णइं जमेण वे-वि पयई +++++++++++++ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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