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________________ रिट्ठणे मिचरिउ जीवंतहं जय - लच्छि विढप्पइ मुयहं सुरंगण कज्जु समप्पइ धत्ता पेक्खतो गरुडासणहो । एत्तिउ उगाहेवि रहरु वाहेवि पइसरिउ विओयरु लउडि- भयंकरु रवि जिह मज्झे हुवासणहो ॥ सव्वेहिं पहरणाई परिचत्तई पहरइं पवण-णंदणो । छाइउ गुरु-सुरण सत्तच्चि - मुहे हिं सरेहिं संदणो ॥ [६] [दुबई] लइ विओयरु सिहिमुह - वाणेहिं वारुण रवि-किरणेहिं व विद्धु महा-घणु उडिउ एकु जालु पंडव-वले -सर णिरत्थ गय पत्थहो एक्कु भीमु थिउ गुरु- सुय-पहरणे कालकंज- महु-सुर - विणिवायण मुक्कासण मुक्काउह ढुक्किय कड्डिउ हरि-सुउ हरियई अत्थई घत्ता महुमह - विण्णाणें एण विहाणें परिचत्ताओहणु थिउ दुज्जोहणु [७] [दुबई] णारायणु णारायण - वारिउ तो मई मारइ तेण ण मेल्लमि कहिं महु जाइ भीमु जीवंतउ Jain Education International जोइंगणेहिं गिरि व फुरमाणेहिं दुणिरिक्खु रिक्खाहि गह- गणु हा हे सद्दु पट्टि हयले स- वलु पणड्डु जुहिट्ठिलु तेत्तहो दत्तसो हुवासणे धाय विणि- विर-णारायण तेण महाणलेण ण झलुक्किय रिउ-सर-जालई कियइं णिरत्थई वलियइं साहणाइं सेणावइ वलिउ समत्थु पत्थिवो । पडिवउ मेल्लि मेल्लि दोणायणि पभणइ कुरु-णराहिवो ॥ तो विरइय-कर-मउलि-पणामें वुच्चइ कुरुवइ आसत्थामें जइ पडिवार रणे संचारिउ अवरहिं पहरणेहिं पडिपेल्लमि कुरुव- रिंद होहि निच्चितउ उवसम-भावहो जणु गउ । पंडव - लोयहो जाउ जउ ।। For Private & Personal Use Only १०२ ११ ४ ८ १० ४ www.jainelibrary.org
SR No.001429
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages282
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size11 MB
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